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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका ही कहा जा सकता है। देवद्धि गणिका तथोक्त सम्पादन प्रकार इन्हीं दोमेंसे एक प्रकारका हो सकता है। एक साथ दोनों प्रकार तो संभव नहीं हो सकते । ___मुनिजीके लेखानुसार मथुरा और वलभीमें जो वाचनाएं हुई उनमें सब प्रकरणोंको लिपिबद्ध कर लिया गया था और वे ग्रन्थ प्रकरण देवर्द्धिगणिके सामने उपस्थित थे। उन्हें ही उन्होंने लिखाकर सुरक्षित किया।
जहां तक हम जान सकें हैं मुनिजीके इस लेखका समर्थन हेमचन्द्राचार्य विरचित योग शास्त्र वृत्तिके सिवाय अन्यत्रसे नहीं होता। हेमचन्द्रने अपनी उक्त वृत्तिमें यह अवश्य लिखा है कि 'दुषमा कालवश जिन वचनको नष्ट प्राय समझकर भगवान नागाजुन स्कन्दिलाचार्य प्रमुखने उसे पुस्तकोंमें लिखा। किन्तु जिनदासकी नन्दि चूर्णिके प्राचीन उल्लेखमें इस बातका कतई निर्देश नहीं है। उसमें उन्होंने केवल इतना ही लिखा है कि स्मृतिके आधारपर कालिक श्रुत संकलित किया गया। हरि
१- 'जिनवचनं च दुषमाकालवशादुच्छिन्नप्रायमिति मत्वा भगवद्भिर्नागार्जुनस्कन्दिलाचार्यप्रभृतिभिः पुस्तकेषु न्यस्तम् ,"योग०, ३, पृ० १०७ ।
२--'वारस' संवच्छरिए महंते दुभिक्खे काले भत्तट्ठा अगएण्णतो हिंडियाणं गहणगुणणणुप्पेहाभावात्रों विप्पणढे सुत्ते, पुणो सुभिक्खे काले जाए मथुराए महंते साधुसमुदए खंदिलायरियप्यमुहसंघेण जो अं संभरइत्ति इव संघडियं कालियसुयं । जम्हा एव महुगए कयं तम्हा माहुरी वायणा भण्णइ ।
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