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________________ ४७६ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका - क्षपणक और नग्नाटक शब्द भी दिगम्बर जैन साधुके लिये ही आया है। वराहमिहिरने भी 'नग्नान जिनानां' पद्यमें इन्हीं नंगे साधुओंका निर्देश किया है। तत्कालीन तथा उत्तरकालीन साहित्य में जैन साधुओंको क्षपणक और नग्नाटक कहे जानेके अन्य भी अभिलेख मिलते हैं। वराहमिहिरसे पूर्व में हुए दिगम्बर जैनाचार्य समन्तभद्रने एक पद्यमें अपनेको 'नग्नाटक और 'मलमलिनतनुः' कहा है। बाणने भी शिखिपिच्छलाञ्छन नग्नाटकको 'उपचित वहलमलपटलमलिनिततनुः बतलाया है, क्योंकि दिगम्बर जैन मुनि नग्न रहनेके साथ ही स्नान भी नहीं करते । अतः उनके शरीरका मलसे मलिन हो जाना स्वाभाविक है। 'ज्योतिर्विदाभरण' ग्रन्थके एक पद्यमें राजा विक्रमादित्यकी एक सभाके नवरत्नोंके नाम गिनाये हैं. जिनमें वराहमिहिर आदिके साथ एक क्षपणकको भी गिनाया है किन्तु उस क्षपणकका नाम नहीं लिखा। श्री सतीशचन्द्र विद्याभूषणने ( हिस्ट्री आफ इण्डि. यन लॉजिक पृ०५) लिखा है कि जिस क्षपणकको हिन्दू लोग विक्रमादित्यकी सभाको भूषित करने वाले नवरत्नोंमें से एक समझते हैं वह सिद्धसेन जैनाचायके सिवाय दूसरा नहीं ; क्योंकि बौद्ध ग्रन्थोंमें भी जैन साधुओंको क्षपणक' नामसे अंकित किया है। प्रमाणके लिये विद्याभूषण महाशयने अवदान कल्पलताके दो पद्य भी उद्धृत किये हैं। अत: इसमें सन्देह नहीं है कि जैन साधुको क्षपणक भी कहते थे। उक्त उल्लेखोंके आधारसे भी यही प्रमाणित होता है कि वराहमिहिरने आजीविकोंका निर्देश दिगम्बर जैनोंके लिये न करके १ 'धन्वन्तरिः क्षपणकोऽमरसिंह-शंकुबेताल भट्टघट-खर्परकालिदासाः । ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नवविक्रमस्य ।' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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