________________
संघ भेद
४११. स्थितिमें श्वेताम्बर सम्प्रदायमें जो साधुके लिये अनेक प्रकारकी उपधियाँ बतलाई हैं उनकी संगति नहीं बैठ सकती। यह बात आचारांग चूर्णिके रचयिताको तथा टीकाकारको भी खटकी । अतः उन्होंने उक्त सूत्रकी अपनी अपनी व्याख्याओंमें इस आपत्ति को पूर्व पक्षके रूपमें रखकर उसका जो समाधान किया वह भी दृष्टव्य है।
आव० चू० में लिखा है-'यदि अल्प या बहुत, सूक्ष्म या स्थूल, चेतन या अचेतन वस्तुको ग्रहण करना परिग्रह है तो जो ये शरीर मात्र परिग्रह वाले और हस्तपुटमें आहार करने वाले हैं, वे ही अपरिग्रही हुए । जैसे वोटिग (दिगम्बर साधु) वगैरह क्योंकि उनके पास अल्प भी परिग्रह नहीं होती। और जब वे ही अपरिग्रही हैं तो शेष व्रत भी उन्हींके होंगे, ब्रत होने पर संयम और संयम से मोक्ष भी उन्हींको होगा। किन्तु ऐसा नहीं है क्योंकि वोटिकोंके पास जो जलपात्र और उनका शरीर है वही परिग्रह है । वही उनके भयका कारण है। ___आचार्य शीलांकने उक्त सूत्रको अपनी टीकामें भी प्रा० चू० की तरह ही शङ्का समाधान लिखा है-वोटिक भी पीछी रखते हैं शरीर रखते हैं, भोजन ग्रहण करते हैं। शायद कहा जाये कि ये सब चीजें धर्ममें सहायक हैं तो वस्त्र पात्र वगैरह भी धर्मके साधन हैं, अतः दिगम्बरका आग्रह रखना व्यर्थ है।
उक्त समाधानसे टीकाकारोंकी मनोवृत्तिका पता चलता है, सभीने प्रायः इसी प्रकारके कुतर्कका आश्रय लिया है । अस्तु,
आगे आ०चा० सू० ( १८२ ) में अचेलताकी प्रशंसा करते हुए लिखा है
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org