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जै० सा० इ० - पूर्व पोठिका
पश्चात् ही उसका विच्छेद हुआ, और शिवभूतिने उसे पुनः प्रच लित करके दिगम्बर सम्प्रदाय की सृष्टि की। अतः जब दिगम्बरोंके अनुसार श्वेताम्बर सम्प्रदाय नया है । तब श्व ेताम्बरों के अनु सार दिगम्बर पन्थ नया नहीं है किन्तु अति प्राचीन है । केवल बीच में ही उसका विच्छेद हो गया था ।
तः श्वताम्बर कथा के अनुसार भी दिगम्बर पन्थ नया प्रमाणित नहीं होता । किन्तु उसमें जो जम्बू स्वामीके पश्चात् ही जिनकल्पका विच्छेद तथा शिवभूतिके द्वारा उसकी पुनः प्रवृत्ति आदि बतलाई है उसका समर्थन अन्य स्रोतोंसे नहीं होता और न यह बात ही गले उतरती है कि आदर्श मार्गका एकदम लोप हो जाये तथा अपवाद मार्गका सार्वत्रिक चलन हो जाये । और फिर एक शिवभूतिके द्वारा, जो न तो ऐतिहासिक व्यक्ति ही है और न कई प्रभावशाली पुरुष ही प्रतीत होता है, पुनः दिगम्बर मार्गका प्रचलन इतने जोरोंसे हो जाये । इन्हीं कारणों से किसी ऐतिहासज्ञ विद्वानने संघ भेदकी उत्पत्तिमें व ेताम्बर कथाको प्रश्रय नहीं दिया जब कि दिगम्बर कथाकी घटनाको अनेक इतिहासज्ञोंने स्थान दिया है।
१ - नीचे कुछ इतिहासज्ञोंके मत दिये जाते हैं
कैम्ब्रिज हिस्ट्री में भद्रबाहु के दक्षिणगमनका निर्देश करके आगे लिखा है - 'यह समय जैन संघके लिये दुर्भाग्यपूर्ण प्रतीत होता है और इसमें कोई सन्देह नहीं है कि ईस्वी पूर्व ३०० के लगभग महान संघभेद का उद्गम हुआ जिसने जैन संघको श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदायों में विभाजित कर दिया । दक्षिण से लौटे हुए साधुत्रोंने, जिन्होंने दुर्भिक्ष काल में बड़ी कड़ाई के साथ अपने नियमोंका पालन किया था, मगध में
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