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संघ भेद
संघ-भेद
भद्रबाहु
naras fर्वाणकालकी चर्चा के प्रसंगसे श्रुतकेवली और मौर्य चन्द्रगुप्तका विवरण आ जानेके पश्चात् भगवान महावीर के संघ में विभेद होनेकी चर्चा करना उचित होगा, क्योंकि इन दोनों महापुरुषोंके कालमें ही उसका सूत्रपात हुआ माना जाता है ।
जैन धर्म से परिचित जनोंसे यह बात अज्ञात नहीं है कि जैन के अनुयायी मुख्य रूपसे दो सम्प्रदायों में विभाजित हैं । एक सम्प्रदाय दिगम्बर जैन कहलाता है और दूसरा सम्प्रदाय श्व ेताम्बर जैन । दोनों सम्प्रदाय भगवान पार्श्वनाथ और भगवान महाarrat अपना धर्मगुरु मानते हैं और दोनोंकी उपासना एकसी श्रद्धा भक्तिके साथ करते हैं । किन्तु दोनोंमें जिस मुख्य बातको लेकर मतभेद है वह दोनोंके नामोंसे ही स्पष्ट है । दिगम्बर-दिशायें ही जिनका वस्त्र ह अर्थात् जो नग्न गुरुओंका उपासक सम्प्रदाय है वह दिगम्बर कहलाता है। और श्व ेताम्बर अर्थात सफेद वस्त्र धारण करनेवाले गुरुओं का उपासक संप्रदाय श्वेताम्बर कहलाता है । अतः दोनों नामोंसे यह स्पष्ट है कि साधुओं के वस्त्र पहनने और न पहननेको लेकर ही दोनों संप्रदायोंकी सृष्टि हुई है । यह संघ भेद कैसे हुआ इस सम्बन्धमें दोनों सम्प्रदायोंमें विभिन्न कथाएँ पाई जाती हैं किंतु उनसे भी यही प्रकट होता है कि वस्त्रके कारण ही संघभेद हुआ। सबसे प्रथम हम दिगम्बर साहित्य में श्वेताम्बर संघकी उत्पत्तिके सम्बंधमें जो कथा पाई जाती है उसीको देते हैंहरिषेण
वृहत्कथा कोश ( वि० सं० १८६ ) में देवसेन के दर्शनसार में (वि० सं० EES ) और भाव संग्रह में तथा रत्ननंदिके भद्रबाहु चरित्र में श्वेताम्बर संघको उत्पत्तिकी कथा दी है।
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