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________________ ३५४ ० सा० इ०-पूर्व पीठिका निर्वाणके पश्चात् क्रमसे होनेवाले तीन केवलज्ञानियोंका निर्देश है। उसके पश्चात् बतलाया है कि अन्तिम केवलज्ञानी श्रीधर हुए, अन्तिम चारण ऋषि सुपार्श्वचन्द्र हुए, अन्तिम प्रज्ञाश्रमण वज्रयश हुए और अंतिम अवधिज्ञानी श्री नामक ऋषि हुए। तत्पश्चात् अंतिम चंद्रगुप्त राजाके दीक्षा लेनेवाली गाथा है। उसके पश्चात् क्रमसे होनेवाले पाँच श्रुतकेवलियोंका निर्देश है, जिनमें अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु थे। __भगवान महावीरके निर्वाणगमनके ३ वर्ष ८॥ मास पश्चात् पंचमकाल प्रारम्भ हुआ। पंचमकालमें ऋद्धि सिद्धिका योग क्वचित् ही होता है। चतुर्थकालमें उत्पन्न हुए मनुष्य पंचमकालमें मुक्त हो सकते हैं, जैसे जम्बूस्वामी। किन्तु पंचम कालके जन्मे हुए जीव मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते । इसी तरह ऋद्धियोंका लाभ भी उत्तरोत्तर हीन होता होता बन्द हो जाता है। अतः केवली और श्रुत केवलियोंके मध्यमें जिन अन्तिम विशिष्ट व्यक्तियोंका निर्देश किया है, महावीर निर्वाणसे कई शताब्दी पश्चात् उनका होना संभव प्रतीत नहीं होता। बहुत संभव तो यही प्रतीत होता है कि श्रुत केवलियोंके थोड़े बहुत आगे या पीछे ही वे महापुरुष हुए हों और शायद इसीलिए उनका निर्देश अन्तिम केवलीके पश्चात् तथा श्रुत केवलियोंके पहले किया है। और इस दृष्टिसे भी जिन दीक्षा लेनेवाले अन्तिम राजा चन्द्रगुप्त श्र तकेबली भद्रबाहुके समयमें होनेवाले मौर्य चन्द्रगुप्त ही हो सकते हैं। अतः भद्रबाहु श्रुतकेवली और मौर्य चन्द्रगुप्तकी समकालीनतामें कोई सन्देह करना उचित प्रतीत नहीं होता । खारवेलके शिलालेखसे समर्थन इसके सिवाय दिगम्बर तथा श्वेताम्बर अनुश्रुतियाँ यह बत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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