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प्राचार्य काल गणना
३४१ गणधरको, जो महावीरके प्रधान शिष्य थे, महावीरके निर्वाणके पश्चात् युगप्रधान पट्टपर आसीन न कराकर सुधर्माको आसीन कराया है। किन्तु कल्पसूत्रके अनुसार महावीर स्वामीका निर्वाण होनेके पश्चात् गौतमको केवल ज्ञानकी प्राप्ति हुई और वे १२ वर्ष तक प्रधान पद पर प्रतिष्ठित रहे। तत्पश्चात् उन्होंने अपना पद सुधर्मा स्वामीको दिया और वे आठ वर्ष तक उस पद पर आसीन रहे। इस तरह स्थविरावलीमें जो सुधर्माके २० वर्ष गिनाये हैं, उनमें १२ वर्ष गौतमके और ८ वर्ष सुधर्माके हैं। किन्तु दोनोंका अलग अलग उल्लेख न करके सुधर्माके ही २० वर्ष बतलाने में क्या हेतु है यह हम नहीं कह सकते। ___जम्बू स्वामी केवलीके पश्चात होने वाले युगप्रधान आचार्यों में भद्रबाहु ही एक ऐसे हैं, जिन्हें दोनों सम्प्रदायोंने माना है। जम्बू स्वामीके पश्चात और भद्रबाहु स्वामीसे पहले होनेवाले ४ प्राचार्योंके नाम दोनों सम्प्रदायोंमें भिन्न भिन्न हैं और उनका काल भी समान नहीं है । इसलिये यह स्पष्ट है कि वे एक दूसरेसे बिल्कुल भिन्न व्यक्ति हैं। किन्तु भद्रबाहुका युगप्रधानत्व दोनों सम्प्रदायोंको स्वीकार्य है। इन्हींके समयमें संघभेद हुआ। इसलिये भी भद्रबाहुका स्थान अखण्ड जैन परम्पराकी दृष्टिसे बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। दि० जैन ग्रन्थ तथा शिलालेख इन्हें मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्तका समकालीन सिद्ध करते हैं। और विदेशी तथा एतद्देशीय इतिहासज्ञोंने भी उनकी सत्यताको स्वीकार किया है। ..
किन्तु उक्त काल गणनाको देखते हुए चन्द्रगुप्त मौर्य और भद्रबाहुकी समकालीनता सिद्ध नहीं होती और उन दोनोंके बीच में वही प्रसिद्ध ६० वर्षका अन्तर पड़ता है। अर्थात् यदि भद्रबाहु के समय वीर नि० १६२ में ६० वर्ष बढ़ा दिये जायें तो चन्द्र
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