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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका उसी दिन उनके प्रधान शिष्य गौतम केवलज्ञानी हुए। उनके मुक्त होने पर सुधर्मा स्वामी केवलज्ञानी हुए । उनके मुक्त होनेपर जम्बू स्वामी केवलज्ञानी हुए। जम्बू स्वामीके मुक्त होनेपर कोई अनुबद्ध केवली नहीं हुआ। इन तीनों के धर्मप्रवर्तनका सामूहिक काल ६२ वर्ष है।
आगे लिखा है-नन्दि, नन्दिमित्र, अपराजित, चौथे गोवर्द्धन और पाँचवें भद्रबाहु, ये पाँच पुरुषश्रेष्ठ जगतमें विख्यात श्रुतकेवली श्री वर्धमान स्वामीके तीर्थमें हुए। इन पाँचोंके कालका सम्मिलित प्रमाण सौ वर्ष होता है। इनके पश्चात् पंचम कालमें भरत क्षेत्रमें कोई श्रुतकेवली नहीं हुआ। ___ इन्द्रनन्दि श्रुतावतारमें तीनों केवलियोंका पृथक पृथक काल भी दिया है। तथा नन्दिसंघकी प्राकृत पट्टावलीमें ( जै. सि० भा०, भाग १, कि० ४) भी प्रत्येक केवली और श्रुतकेवलीका पृथक पृथक काल दिया है, जो इस प्रकार है१---"णंदीय णंदिमित्तो विदिश्रो अवराजिदो तइजो य ।
गोवद्धणो चउत्यो पंचमश्रो भद्दबाहुत्ति ॥१४८२॥ पंच इमे पुरिसवरा चउदसपूवी जगम्मि विवादा । ते बारस अंगधरा तित्थे सिरिवड्डमाणस्स ॥१४८३॥ पंचाण मेलिदाणं कालपमाणं हवेदि वाससदं । वीदम्मि पंचमए भरहे सुदकेवली णत्थि ॥१४८४॥
-तिलोयप०, अ० ४ । ज० ५१ भा० १, पृ०८५ । धवला, पु० १, पृ० ६६ । हरि० पु०, सर्ग ६६, श्लो० २२ । इन्द्र० श्रुता०, श्लो ७२-७८।
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