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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका के राज्यारोहणसे पहलेके २१८ वर्ष जोड़नेसे (३२६+२१८) ईस्वी पूर्व ५४४ आता है। यही बुद्ध निर्वाणका समय है । सीलोन, बर्मा और स्यामकी दन्तकथाओंके अनुसार भी बुद्ध निर्वाणका यही काल आता है।
२-डा० हार्नले सरस्वती गच्छ की पट्टावली की १८वीं गाथा के आधार पर विक्रम सम्वत्के प्रारम्भ काल ४७० वर्ष पश्चात् में १६ वर्ष बढ़ाते हैं। गाथाका अर्थ यह है कि विक्रम १६ वर्षकी उम्र तक गद्दी पर नहीं बैठा अर्थात् १७वें वर्ष में उसका राज्याभिषेक हुआ। इसका यह तात्पर्य हुआ कि महाबीर निर्वाणके ४८७ वर्ष पश्चात् विक्रम गद्दी पर बैठा । इसका परिणाम यह निकला कि जैनोंने विक्रम संवत्के प्रथम वर्ष (ई० स० पूर्व ५८-५७) के अन्तमें और महावीर निर्वाणके पश्चात् ४७० वर्ष पूरा होनेके बीचमें १८ वर्षका अन्तर छोड़ दिया।
३-प्रद्योत के समयसे लेकर शक राज्य और विकम सम्वत् तककी जैन काल गणना नीचे अनुसार है
जिस रात्रिमें महावीरका निर्वाण हुआ उसी रात्रिमें पालक अवन्तीकी गद्दी पर बैठा। पालकके राज्यके ६० वर्षके पश्चात्
१-जं रयणि काल गश्रो अरिहा तित्थंकरो महाबीरो ।
तं रयणि अवंतिवई अहिसित्तो पालगो राया ॥१॥ सट्ठी पालगरगणो पणवरण सयं तु होइ नन्दाणं । अठसयं मुरियाणं तोस चिय पुस्तमित्तस्स ॥२॥ बलमित्त-माणुभित्ता सट्ठी वरिसाणि चत्त नहवहने । तह गद्दभिल्लरज्जं तेरस वरिसा सगस्स चउ ।। ३ ॥
-विचार श्रे० में उद्धृत
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