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________________ २७२ जै० सा० इ० - पूर्व पीठिका साहित्य से केवल एक इन्द्रभूतिके सम्बन्ध में ही थोड़ी सी जानकारी प्राप्त होती है । शेष गणधरोंके विषयमें कुछ भी ज्ञात नहीं होता । श्वेताम्बरी आगमोंसे भी गणधरोंके विषय में स्वल्प ही जानकारी प्राप्त होती है । यथा समवायांग सूत्र ११ में ग्यारह गणधरोंके नाम बताये हैं, सम० सू० ७४ में अग्निभूतिकी आयु ७४ वर्ष बतलाई है, सम० सू० ७८ में अकम्पित गणधरका आयु ७८ वर्ष बतलाई है । सम० सू० १२ में इन्द्रभूतिकी आयु ६२ वर्षे बतलाई है । कल्पसूत्र की स्थविरावली में कहा है कि भगवान महावीरके नौ गण और ग्यारह गणधर थे । इसका स्पष्टीकरण करते हुए कल्पसूत्र में ग्यारह गणधरोंके नाम गोत्र और प्रत्येक के शिष्यों की संख्या बतलाई है । गणधरोंकी योग्यता के विषय में लिखा है कि सभी गणधर द्वादशांग और चतुदश पूर्वके धारी थे । तथा सभी राजगृहसे मुक्त हुए। उनमें भी इन्द्र भूति और सुधर्मा के सिवाय शेष नौ गणधर भगवान महावीर के रहते हुए ही मुक्त हुए । उक्त स्थविरावली में यह भी लिखा है कि आज जो श्रमण संघ पाया जाता है वह सुधर्माकी परम्परा में है । शेष गणधर निस्सन्तान ही मुक्त हुए- उनकी शिष्य परम्पराका अभाव है। इन्द्रभूति के विषय में धवलामें लिखा है - उनका गोत्र गौतम था, वर्ण ब्राह्मण था, चारों वेद और छहों वेदांगोंमें वह पारंगत थे तथा शीलवान और ब्राह्मणोंमें श्रेष्ठ थे । जीव अजीव विषयक सन्देहको दूर करनेके लिये महावीर स्वामीके पादमूलमें उपस्थित १. ' गोत्तेण गोदमो विप्पो चाउव्वेय सडंगवि । गामेण इंदभूदित्ति सीलवं बह्मत्तमो ॥ ६१ ॥ - षट्खं, पु० १, पृ० ६५ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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