________________
२४८
जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका इससे भी विरोध आता है। तथा यदि अन्य तीर्थङ्कर सवस्त्र थे तो महावीर भगवानकी तरह उनके वस्त्र त्यागका काल क्यों नहीं बतलाया ? हां, यह कहना उचित होगा कि जब महावीर सर्वस्वको त्याग कर ध्यानमें स्थित थे तो किसीने उनके कन्धेपर वस्त्र रख दिया, जो एक उपसर्ग था।" .
महावीर भगवानके देवदूष्य धारण करनेके सम्बन्धमें अपराजित सूरिने जो अभिमत प्रकट किया है हमें भी वही उचित जान पड़ता है।
आवश्यक' नियुक्तिमें लिखा है कि चौबीसों तीर्थङ्कर एक वस्त्रके साथ प्रव्रजित हुए। इसकी व्याख्या करते हुए भाष्यकार जिन भद्रगणि क्षमाश्रमणने लिखा' हैं____ "सभी जिन भगवान वज्रवृषभनाराच संहननके धारी होते हैं, चार ज्ञानवाले और सत्त्वसम्पन्न होते हैं, उनके हस्तपुट छिद्ररहित होते हैं. और वे परीषहों को जीतने वाले होते हैं । अतः वस्त्र पात्र आदि उपकरणोंसे रहित होने पर भी वनके अभावमें लगने वाले संयमकी विराधना आदि दोष उन्हें नहीं लगते। उनके लिये वस्त्र-पात्र संयमका साधन नहीं है अतः वे उनका
१--'सब्वे वि एगदूसेण णिग्गया जिणवरा चउवीस" ॥२२७॥ २-निरुवमधिइ संहणणा चउनाणातिसयसत्तसंपण्णा ।
अच्छिद्दपाणिपत्ता जिणा जियपरीसहा सव्वे ॥ २५८१ ॥ तम्हा जहुत्तदोसे पावंति न वत्थपत्तरहिया वि । तदसाहणं ति तेसिं तो तग्गहणं न कुव्वंति ।। २५८२ ।। तहवि गहिएगवत्था सवत्थतिथोवएसणत्थं ति । अभिनिक्खमंति सव्वे तम्मि चुएऽचेलया हुति ॥२५८३॥
-विशे० भा।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org