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२४० __ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका चौदह स्वप्न देखे जो तीर्थङ्करके जन्मके सूचक थे, इन्द्रने इस बातको अपने अवधि ज्ञानसे जाना तो उसे ज्ञात हुआ कि गर्भस्थ शिशु महान् तीर्थङ्कर महावीर होनेवाला है। अतः उसने तत्काल एक देवको एक हिरनके रूपमें भेजा और उसे देवानन्दाके गर्भसे त्रिशलाके गर्भमें परिवर्तित करनेकी आज्ञा दी, जिससे महावीरका जन्म भिक्षुक ब्राह्मण वंशमें न हों, क्योंकि जिन क्षत्रिय कुलमें ही जन्म लेते हैं। इस तरह भगवान महावीर' ८२ दिन तक देवानन्दाके गर्भमें रहें। भ० सू० में यह बात भगवान महावीरके मुखसे भी कहलाई गई कि देवानन्दा मेरी माता है। __इस घटनाके सम्बन्धमें डा० याकोवीने जो टिप्पणी दी है उसका आशय यहां दिया जाता है।
'दिगम्बर लोग इसे हास्यास्पद समझते हैं और नहीं मानते । किन्तु श्वेताम्बरोका इसकी सत्यतामें दृढ़ विश्वास है। इसमें कोई सन्देह नहीं हैं कि यह कथा प्राचीन है क्योंकि आचारांग, कल्पसूत्र तथा अन्य प्रन्थोंमें पाई जाती है। तथापि यह स्पष्ट नहीं होता कि क्यों इस प्रकारकी हास्यास्पद घटनाका आविष्कार तथा प्रचार किया गया। इस अन्धकारावृत विषय पर मैं अपनी सम्मति प्रकट करनेकी आज्ञा चाहता हूं। मेरा अनुमान है कि सिद्धार्थके दो पत्नियां थीं एक ब्राह्मणी देवानन्दा, जो महावीरकी वास्तविक माता थी, और एक क्षत्रियाणी त्रिशला। क्योंकि देवानन्दाके पतिका नाम 'ऋषभदत्त' अधिक प्राचीन प्रतीत नहीं होता । प्राकृत रूपके अनुसार उस अवस्थामें उसभदत्तके स्थान
१-'समणे भगवं महावीरे"वासीइ""गभचाए साहरिए'क० सू०, सम्बो० टी०, पृ० ३५-३६ ।
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