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________________ भगवान् महावीर २२५ इसके सिवाय म० नि० ( सागगामसुत्त ) में निग्रन्थ ज्ञातपुत्रका मरण भी पावामें बतलाया है जैसा कि जैन परम्परामें महाबीरका निर्वाण बतलाया है। यद्यपि बौद्ध साहित्यकी पावा जैन पाव' से भिन्न है, तथापि नाम साम्यसे व्यक्तिके ऐक्यका ही समर्थन होता है। जन्म स्थान भगवान महाबीरका जन्म कुण्डपुर या कुण्डग्राममें हुआ था। यह दोनों सम्प्रदायोंको मान्य हैं। किन्तु कुण्डपुर या कुण्डग्राम कहाँ था, इसमें विप्रतिपत्ति है। साधारणतया ऐसा माना जाता है कि कुण्डपुर एक बड़ा नगर था और सिद्धार्थ एक शक्तिशाली राजा थे। किन्तु आचा० सू० (२ श्रु०, ३ चू०, सू० ३६६ ) में कुण्डग्रामको एक सनिवेश कहा है। उसके अनुसार कुण्डपुर नामके दो सन्निवेश थे एक माहण कुण्डपुर और दूसरा खत्तियकुण्डपुर । अर्थात् एक कुण्डपुर ब्राह्मणोंका था और एक क्षत्रियों का था। माहण उल्लेखनीय है । वे बारम्बार कहते हैं कि निगंठ नाट पुत्त अपनेका अर्हत् कहते हैं और सर्वज्ञ होनेका दावा करते हैं । जैन वर्धमानको अर्हत् और सर्वज्ञ मानते ही हैं। धर्म परिवर्तनका इतिहास हमें बतलाता है कि नाटपुत्त और उनके शिष्य निग्रन्थ अपने शरीर को ढांकनेसे घृणा करते थे। वर्धमानके विषयमें भी हमसे ऐसा ही कहा जाता है ।......."अतः जैनोंका वर्धमान नाटपुत्त बुद्ध के प्रतिद्वन्दीके सिवाय दूसरा नहीं है । बौद्ध त्रिपिटकों तथा अन्य बौद्ध साहित्यके विवरणोंसे प्रकट होता है कि बुद्ध का यह प्रतिद्वन्दी बड़ा प्रभावशाली श्रतएव बड़ा खतरनाक था। तथा बुद्ध के समयमें ही उसका धर्म काफ़ी फैल चुका था । ( इ० से० जै०, पृ० ३६ )। १५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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