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भगवान महावीर
२.३ नामसे ख्यात है बुद्धके समयमें उसे निर्ग्रन्थ कहते थे। इसमें सन्देहका कोई कारण नहीं प्रतीत होता।
दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों इस बातसे सहमत हैं कि महावीर कुण्डपुर या कुण्ड ग्रामके राजा सिद्धार्थके पुत्र थे। और सिद्धार्थ दिगम्बरीय उल्लेखोंके अनुसार णाह वंश या नाथ वंशके क्षत्रिय थे और श्वेताम्बरीय' उल्ले खोंके अनुसार णाय कुलके थे । इसीसे महावीरको रणायकुलचन्द और णायपुत्त कहा है।
णाह, णाय, णात ये सब शब्द एक ही अर्थके वाचक हैं। इसीसे बुद्धचर्या में श्री राहुलजीने नाटपुत्तका अर्थ- ज्ञातृपुत्र
और नाथ पुत्र दोनों किया है। अतः दिगम्बरोंके अनुसार महाबीर नाथपुत्र थे तो श्वेताम्बरोंके अनुसार ज्ञातृपुत्र थे। अतः बौद्ध ग्रन्थोंमें निर्दिष्ट णाटपुत्त अवश्य ही जैन तीर्थङ्कर महाबीर हैं। उस समय जाति और देशके आधारपर इस तरहके नामोंके व्यवहार करनेका चलन था। जैसे बुद्धको शाक्यपुत्र कहा है क्योंकि वह शाक्य वंशके थे और उनका जन्म शाक्य देश ( कपिलवस्तु ) में हुआ था। इसीसे उनके अनुयायी श्रमण शाक्यपुत्रीय श्रमण ( बु० च०, पृ. ५५१ ) कहे जाते थे। इसी तरह महाबीर भी अपनी जाति तथा वंशके आधार पर
१-कुण्डपुरपुरवरिस्सरसिद्धत्थक्खत्तियस्स णाहकुले । तिसिलाए देवीए देवीसदसेवमाणाए ॥ २३ ॥
-ज. घ०, भा० १, पृ० ७८ 'णाहोग्गवंसेसु वि वीर पासा' ॥ ५५० ॥ ति० प०, अ० ४ । 'उग्रनाथौ पार्श्ववीरौ'-दशभ०, पृ० २४८ । २–णातपुत्ते महावीरे एवमाह जिणुत्तमें'-सूत्र० १ श्रु १, १०, १ उ० ।
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