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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
२११ आत्माके कर्मबन्धन और कर्मोसे छुटकारेको लेकर भी सांख्ययोग और जैनमें बहुत भेद है।
इसके सिवाय जैन दर्शन मानता है कि पृथिवी, जल, वायु, अग्नि और वनस्पतिमें भी जीव है और उसके केवल एक स्पर्शन इन्द्रिय होती है। सारांश यह है कि जड़ और
आत्माको लेकर जैनदर्शन और सांख्य-योगमें इतना सुनिश्चित अन्तर है कि उसे देखते हुए यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि जैनोंने सांख्ययोगसे या सांख्ययोगने जैनोंसे कुछ लिया है।
फिर भी सांख्य और जैन दर्शनकी आत्मविषवक कतिपय बातोंमें समानता देखकर जेकोबीका ऐसा अनुमान है कि ये दोनों दर्शन लगभग एक ही कालमें उदित हुए हैं।
कौटिल्यके अनुसार उसके समयमें ( ३०० ई० पूर्व ) सांख्ययोग और लोकायत ये ही ब्राह्मण दर्शन वर्तमान थे। अतः अवश्य ही ये कौटिल्यकालसे प्राचीन हुए कहलाये।
अब हम भगवान पार्श्वनाथके ऐतिहासिक व्यक्ति होनेके सम्बन्धमें कुछ प्रमाण उपस्थित करेंगे।
भगवान पार्श्वनाथकी ऐतिहासिकता न केवल जैन साहित्यसे किन्तु बौद्ध साहित्यसे भी पार्श्व: नाथकी ऐतिहासिकता प्रमाणित होती है। उसके सम्बन्धमें सर्वप्रथम एक बात उल्लेखनीय है। और उसे हम अपनी ओरसे न लिखकर डा० याकोवीके ही शब्दोंको लेकर लिखना उचित समझते हैं।
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