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________________ २०८ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका योग जैसे प्राचीनतम दर्शनोंके मुख्य भाग हैं। वैशेषिक और न्यायदर्शनका उदय तो बहुत बादमें हुआ है और इन दोनोंने भी उक्त दोनों सिद्धान्तोंको अपनेमें स्थान दिया है। बादरायणने ब्रह्मसूत्रमें वेदान्त दर्शनको निबद्ध किया है। यद्यपि यह कहा जाता है कि उन्होंने उपनिषदोंकी शिक्षाको ही व्यवस्थित रूप दिया है, किन्तु ब्रह्मसूत्रमें भी जीवको अनादि और अविनाशी माना है। शंकराचार्यने अपने भाष्यमें भले ही इसके विरुद्ध प्रतिपादन किया है। इसके लिये कलकत्ताके श्री अभयकुमार गुहका 'ब्रह्मसूत्र में जीवात्मा' शीर्षक निबन्ध पठनीय है। ___ कठ और श्वेताश्वर उपनिषदोंमें ब्रह्मसे आत्माओंका पृथक अस्तित्व माना है, यद्यपि दूसरी ओर उनमें दोनोंके ऐक्यका भी समर्थन मिलता है। किन्तु ब्रह्मसूत्र तो उन उपनिषदोंसे भी एक कदम आगे बढ़ गया है । अस्तु, इस तरह स्वतंत्र आत्माओंकी अमरतामें विश्वास ही विचारोंको नया रूप प्रदान करने में मुख्य कारण हुआ है। उसीने वैदिक युगका अन्त किया है। उसीके साथ पुनर्जन्म और कर्मका सिद्धान्त सम्बद्ध है जिनके विषयमें पहले लिख है । अस्तु, ___पहले लिख आये हैं कि जैन और सांख्य योग प्राचीनतम दर्शन हैं जो वैदिक युगके अन्तके साथ ही सम्मुख आते हैं। ये ऊपर बतलाये गये सिद्धान्तोंके, खासकर अमर आत्माओंका बहुत्व और जड़के पृथकत्वके समर्थक हैं। यद्यपि इन्होंने इन विचारोंको अपने-अपने स्वतंत्र ढंगसे विकसित किया है, फिर भी दोनोंमें कहीं-कहीं सादृश्यसा प्रतीत होता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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