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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका उल्लेख का क्या आधार है। फिर भी जातकोंके विस्ससेण
और पुराणोंके विश्वकसेनके साथ उसकी एकरूपता संभव है।
प्रव्रज्या और उपसर्ग काशीराजके पुत्र क्षत्रिय पार्श्वनाथने तीस वर्षकी अवस्थामें जिन दीक्षा धारण की और तपस्यामें लीन होगये। उनके इस विरागका कारण एक घटना थी । एक दिन वह गंगाके तटपर विचरते थे। वहां कुछ साधु पंचाग्नि तप तपते थे । अग्निमें जलती हुई एक लकड़ीमें पार्श्वनाथने एक नाग युगलको पीड़ित देखा । उनका दयालु चित्त जहां उसके कष्टको अनुभव कर द्रवित हुआ वहां इस अज्ञान मूलक तपको देखकर खेद खिन्न भी हुआ। उन्होंने तुरन्त उस मृतप्राय नाग युगलको बचानेकी चेष्टा की और जीवन रक्षा अशक्य जानकर उसे धर्मोपदेश दिया। उसके प्रभाव से वह नाग युगल धरणेन्द्र और पद्मावती के नामसे नाग जाति के देवताओं का अधिपति हुआ। और पार्श्वनाथने जिन दीक्षा धारण करली। ___ एक बार निग्रन्थ पार्श्वनाथ विचरते बिचरते अहिच्छत्र ( बरेली जिलेमें रामनगरके पास ) पहुँचे और तपस्यामें लीन हो गये। उनके पूर्वजन्मका बैरी एक व्यन्तर देव उधरसे जाता था। उसने अपने बैरीको ध्यानस्थ देखकर घोर उपसर्ग किया। उस समय देवरूपधारी उस नागदम्पतीने आकर पार्श्वनाथकी रक्षा की। उसने सर्पका रूप धारण करके अपना विशाल फण पार्श्वनाथके ऊपर फैला दिया। उसीकी स्मृतिमें पार्श्वनाथकी मूर्तियों पर सर्पका फण बना होता है, और वही पार्श्वनाथका विशिष्ट चिन्ह माना जाता है।
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