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________________ १८६ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका ___ उक्त कथनमें वैदिक आर्योंके सरस्वती नदीके तटसे सदानीराके तटतक धीरे धीरे बढ़नेका वृत्तान्त निहित है। सदानीरा, जो आज कल गण्डक नदी कही जाती है. दोनों राज्योंकी सीमा थी। उसके पश्चिममें कोसल था और पूरबमें विदेह था । सदानीरा कोसलको विदेहसे पृथक करती थी । बहुत समय तक यह नदी आर्योंके संसारकी सीमा मानी जाती थी। इसके आगे ब्राह्मण लोग यथेच्छ नहीं आते जाते थे। वैदिक साहित्यमें कोसलके किसी नगरका नाम नहीं आता। शतपथ ब्रा के अनुसार कोसलमें ब्राह्मण सभ्यताका प्रसार कुरु पञ्चालके पश्चात् तथा विदेहसे पहले हुआ । रामायण तथा हिन्दू पराणोंके अनुसार कोसलका राजवंश इक्ष्वाकु नामके राजास चला था। इसी वंशकी शाखाओंने विशाला या वैशाली, मिथिला और कुशीनारामें राज्य किया। कोसलकी तरह विदेहका निर्देश भी प्राचीन वैदिक साहित्य में नहीं है। दोनोंका प्रथम निर्देश शतपथ बाह्मण (१, ४-१-१० ) में मिलता है। उल्लेखोंसे प्रकट होता है कि कोसल और विदेह परस्पर मित्र थे तथा उनमें और कुरु पञ्चालोंमें मत भेद होनेके साथ ही साथ शत्रुता भी थी। विद्वानोंका मत है कि विदेह राज जनक उपनिषदोंके दर्शनका प्रमुख संरक्षक था । उसके समयमें ही विदेहको प्राधान्य मिला। शतपथ ब्रा० (१, १-६-२१ ) में लिखा है कि राजा जनक की भेंट प्रथम बार कुछ ब्राह्मणोंसे हुई। उसने उनसे पूछा-आप अग्नि होत्र कैसे करते हैं ? अन्य ब्राह्मणोंमें से तो किसीका उत्तर ठीक नहीं था। याज्ञवल्क्यका उत्तर यद्यपि पूर्ण ठीक नहीं था Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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