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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
१६९ यह सुनते ही श्री कृष्णने बड़े प्रेमसे पुकारा और जरत्कुमार भी धनुषवाण फेंककर श्री कृष्णके चरणोंमें विलाप करने लगा। श्री कृष्णने उसे समझाते हुए कहा-बलदेव पानी लेनेके लिए गये हैं। उनके लौटनेके पूर्व ही तुम यहाँ से चले जाओ । अन्यथा वह तुम्हें जीवित न छोड़ेंगे। __ जरत्कुमारके जाते ही श्री कृष्णने तीव्र वेदनासे पीड़ित होकर प्राण त्याग किया।
श्रीकृष्ण और नेमिनाथका यह संक्षिप्त वृत्तान्त दोनोंके जीवनक्रम तथा मार्गपर प्रकाश डालनेके लिए पर्याप्त है । नेमिनाथ निवृत्तिमार्गी थे और श्री कृष्ण प्रवृत्तिमार्गी । नेमिनाथ अपने विवाहके निमित्तसे होनेवाली पशु हिंसाके कारण न केवल विवाह से ही विरक्त हुए, किन्तु संसारसे ही विरक्त होगये । किन्तु श्री कृष्ण अन्त तक प्रवृत्तिशील रहे-समस्त यादवोंका विनाश होनेपर भी उन्होंने निवृत्ति मार्गको नहीं अपनाया। अतः यदि उन्हें भागवत धर्मका संस्थापक माना जाता है तो स्पष्ट ही भागवत धर्म प्रवृत्तिमार्गी है। ___डा० कीथ ( ज. रा० ए० सो० १६१५, पृ० ८४२-८४३ ) तथा मैकनिकल (इं० थीज्म, पृ० ६३ ) ने श्री कृष्ण पूजाका प्रभाव जैन धर्मपर बतलाया है। डा. कीथका कहना है कि महावीरके जन्मकी कथा श्री कृष्णके जन्मकी कथासे ली गई है। इस संबन्धमें हम भगवान महावीरके सम्बन्धमें लिखते समय प्रकाश डालेंगे। जहाँ तक भक्तिवादका संबन्ध है, हमें यह स्वीकार करने में संकोच नहीं है कि श्री कृष्णकी भक्तिका प्रभाव जैन धर्मपर भी पड़ा है और उससे जैन धर्मका भक्तिप्रबाह विकृत और विरूप हुआ है।
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