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________________ १२० जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका उधर महाभारत शान्ति०, अ० ३४६ में हिरण्यगर्भ को योग का वक्ता बतलाया है। यथा हिरण्यगर्भो योगस्य वक्ता नान्यः पुरातनः । अर्थात् हिरण्यगर्भ योगमार्गके प्रवर्तक हैं अन्य कोई उनसे पुरातन नहीं है । तो क्या ऋषभदेव और हिरण्यगर्भ कहीं एक ही व्यक्ति तो नहीं है, इधर जैन शास्त्र ऋषभदेवका काल बहुत प्राचीन बतलाते हैं तो उधर ऋग्वेद 'हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे' लिखकर हिरण्यगर्भकी प्राचीनताको सूचित करता है। 'हिरण्यगर्भः' शब्द लाक्षणिक होते हुए भी किसी व्यक्ति का सूचक है यह बात ऋग्वेदके 'हिरण्यगर्भः समवर्तता' पदसे व्यक्त होती है। हिन्दू पुराणों में ऋषभदेव “नाभि पुत्र ऋषभ और ऋषभ पुत्र भरत की चर्चा प्रायः सभी हिन्दू पुराणों में आती है। मार्कण्डेय पु० अ० ५०, कूर्म पु०अ०४१ अग्नि पु०अ०१०, वायु पुराण अ० ३३, गरुण पु० अ० १, ब्रह्माण्ड पु०अ० १४, वाराह पु० अ०७४, लिग पुराण अ० ४७, विष्णु पु० २, अ० १, और स्कन्द पु० कुमारखण्ड अ० ३७, में ऋषभदेवका वर्णन आया है। इन सभीमें ऋषभको नाभि और मरु देवीका पुत्र बतलाया है। ऋषभसे सौ पुत्र उत्पन्न हुये। उनमेंसे बड़े पुत्र भरतको राज्य देकर ऋषभने प्रव्रज्या ग्रहण करली। इस भरतसे ही इस देशका नाम भारतवर्ष पड़ा । यथा नाभिस्त्वजनयत पुत्रं मेरुदेव्यां महाद्युतिः। ऋषभं पार्थिवश्रेष्ठं सर्वक्षत्रस्य पूर्वजम् ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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