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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका रूप लेकर तो अवतरित नहीं हुआ है; क्योंकि दोनोंके कुछ रूपोंमें हम आंशिक समता पाते हैं। इधर ऋषभ देवका चिन्ह बैल है, जो मोहेज्जोदड़ोंसे प्राप्त सील नं० से ५ तक पर अङ्कित तथा कार्योत्सर्ग मुद्रामें स्थित आकृतियोंके साथ भी बना हुआ है। उधर शिवका चिन्ह भी बैल है। इधर ऋषभ देवका निर्वाण कैलाससे माना जाता है उधर शिवको कैलासवासी माना जाता है।
डा० भण्डारकर शिवके साथ उमाके योगको उत्तरकालीन बतलाते हैं। उमाका नाम केन उपनिषद्में आया है और उसे हैमवती- हिमवत्की पुत्री बतलाया है, किन्तु शिव या रुद्रकी पत्नी नहीं बतलाया है।
इस सम्बन्धमें विशेष प्रकाश डालनेके लिये हमें वेदोंकी ओर जाना होगा। क्योंकि डा० राधाकृष्णन्' जैसे मनीषीने भी यह स्वीकार किया है कि वेदोंमें ऋषभ देव आदि जैन तीर्थङ्करोंके नाम आये हैं।
ऋग्वेद (२-३३-१५ ) में रुद्रसूक्तमें एक ऋचा है'एव वभ्रो वृषभ चेकितान यथा देव न हृणीषे न हंसी।' हे वृषभ ! ऐसी कृपा करो कि हम कभी नष्ट न हों। और भी एक मंत्र है
अनवीणं वृषभं मंद्र जिह्व वृहस्पतिं वर्धया नव्यमः। . ___ आगे चलकर वैदिक रुद्र देवताने शिवका रूप ले लिया और वे पशुपति' कहलाये, यह बात सर्वविश्रुत है। किन्तु ताण्ड्य और शतपथ ब्राह्मणमें ऋषभको पशुपति कहा है। यथा -
१. हि. इं० फि, जि० १, २. चीनी यात्री हुएन्सांगने (ई० ७वीं शतीके मध्यमें ) अपने
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