________________
करणानुयोग-प्रवेशिका दूना विस्तार हिमवान् पर्वतका है और हिमवान से दूना विस्तार हैमवत क्षेत्रका है। इस तरह विदेह क्षेत्र तक दूना-दूना विस्तार होता जाता है और फिर आगे आधा-आधा विस्तार होता जाता है। विदेह क्षेत्रके बीच में मेरु पर्वत है, मेरुसे उत्तर तरफ उत्तरकुरु है और दक्षिण तरफ देवकुरु है । जम्बूद्वीपको चारों तरफसे खाईकी तरह बेढ़े हुए दो लाख योजन चौड़ा लवण समुद्र है। लवण समुद्रको चारों तरफसे बेढ़े हुए चार लाख योजन चौड़ा धातकोखण्ड द्वीप है। इस धातकीखण्ड द्वीपमें उत्तर और दक्षिणकी ओर उत्तर दक्षिण लम्बे दो इष्वाकार पर्वत खड़े हुए हैं। उनसे विभक्त हो जानेसे इस द्वीपके दो भाग हो गये हैं-एक पूर्व धातकीखण्ड और दूसरा पश्चिम धातकीखण्ड । दोनों भागोंके बीच में एक-एक मेरु पर्वत हैं और उनकी दोनों ओर क्षेत्र कूलाचलवगैरहकी रचना जम्बूद्वीपकी तरह है। इस तरह धातकीखण्डमें सब रचना जम्बूद्वीप से दूनी है। धातकोखण्ड को चारों तरफ से बेढ़े हए आठ लाख योजन चौड़ा कालोदधि समुद्र है और कालोदधिको बेढ़े हुए सोलह लाख योजन चौड़ा पुष्करद्वीप है । पुष्करद्वीपके बीचोबीच चूड़ीके आकारका मानुषोत्तर नामा पर्वत पड़ा हुआ है जिससे पुष्करद्वीपके दो खण्ड होगये हैं । पुष्कर द्वोपके पूर्वार्ध भागमें धातकीखण्डकी तरह ही सब रचना है। जम्बूद्वीप, धातकोखण्ड और पुष्करार्धद्वीप तथा लवणोदधिसमुद्र और कालोदधि समुद्र इतने क्षेत्रको मनुष्य लोक कहते हैं। क्योंकि मानुषोत्तर पर्वतसे आगे मनुष्योंका वास नहीं है। पुष्करद्वीपसे आगे परस्पर एक दूसरेको बेढ़े हुए दूने-दूने विस्तारवाले मध्यलोकके अन्त पर्यन्त असंख्यात द्वीप समुद्र हैं। सबके अन्त में स्वयं सुरक्षा नामका द्वीप और उसको घेरे हुए स्वयम्भूरमण नामका समुद्र है।
६०. प्र०-कर्मभूमि किसे कहते हैं ?
उ०-जहाँ असि, मषि, कृषि, वाणिज्य, विद्या और शिल्प इन छै कर्मोंकी प्रवृत्ति हो उसे कर्मभूमि कहते हैं।
६१. प्र०-कर्मभूमियाँ कितनी हैं ?
उ०-पाँच मेरु सम्बन्धो, पाँच भरत, पांच ऐरावत और देवकुरु उत्तरकुरुको छोड़कर पाँच विदेह इस प्रकार सब मिलाकर १५ कर्मभूमियाँ हैं ।
६२. प्र०-भोगभूमि किसे कहते हैं ?
उ०-जहाँ दस प्रकारके कल्पवृक्षोंसे प्राप्त भोगोंको ही भोगा जाता है और छै कर्मोको प्रवृत्ति नहीं है उसे भोगभूमि कहते हैं। ६३. प्र०-भोगभूमियाँ कितनी हैं ?
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org