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________________ विषयानुक्रमणी प्रश्नांक ५०५ २५५ २५६ २६१ ८७ . ८८ १० ४६३ १६ ७ १४६ ४८४ ४७४ प्रश्नांक लौकान्तिक देव ___८० विहायोगति नामकर्म लौकिक मान १६ वैक्रियिक काययोग वैक्रियिक मिश्रकाययोग वचनयोगमें गुणस्थान २५२ वैक्रियिक और वैक्रियिक वज्रवृषभनाराच संहनन ४८७ मिश्रयोग किसको वज्रनाराच संहनन ४८८ व्यन्तर देवोंके भेद वनस्पतिकायके भेद २३४ व्यन्तर कहां रहते हैं वर्ग व्यन्तरोंकी आयु वर्गणा ५६१ व्यवकलन वर्गमूल व्यवहारपल्य वर्ण नामकर्म व्यास वातवलय ६७ व्युच्छित्ति वामन संस्थाननाम ४८२ विकलेन्द्रियके नौ भेद शरोरअंगोपांग नाम विग्रहगति २६५ शरोर नामकर्म विग्रहगतिके भेद २६६ शरीरपर्याप्ति विशुद्धिलब्धि ३५८ शरीरबन्धन नामकर्म विस्तारसे जीवसमास १४४ शरीर संघात नामकर्म विस्तारसे योनिके भेद १७६ शरीर संस्थान नामकर्म विहारवत्स्वस्थान आदिका शरीरमें अंग उपांग ___ अभिप्राय ४०६ शुभ नामकर्म वेद २६७ श्रुतज्ञान वेदके भेद श्रुतज्ञानके भेद वेदक सम्यक्त्व ३६५ श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति वेदक सम्यक्त्वकी स्थिति ३६८ श्रेणि चढ़नेका अभिप्राय वेदना समुद्घात आदिका श्रेणि चढ़नेका पात्र स्वरूप २७४ श्रोत्र इन्द्रिय वेदनीय कर्म ४४१ वेदनीय कर्मके भेद ४५४ संकलन वेदनोय कर्मको उत्तर प्रकृतियों संक्रमण ___ में उत्कृष्ट स्थितिबन्ध ५४४ संक्रमणके नियम विपुलमति मनःपर्यय ३१८ संक्षेपमें जीवसमास १६० ४७५ ४७७ ४८५ ५१७ २६७ २६६ १६२ १२० १२५ २२४ ५८७ ५८८ १४३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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