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________________ करणानुयोग- प्रवेशिका ६५. ६३७. प्र० - सासादन गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियोंका बन्ध होता है ? - पहले गुणस्थान में जो ११७ का बन्ध होता है उनमें से मिथ्यात्व गुणस्थान में जिनकी व्युच्छित्ति होती है उन सोलह प्रकृतियोंको घटानेपर सासादन में १०१ प्रकृतियां बन्ध योग्य हैं । उ० ६३८. प्र० - सासादन गुणस्थानमें किन प्रकृतियोंकी बन्धव्युच्छित्ति होती है ? - अनन्तानुबन्धी चार स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, दुभंग, दुस्वर, अनादेय, न्यग्रोध परिमण्डल, स्वाति कुब्जक वामन ये चार संस्थान, वज्रनाराच, नाराच, अर्धनाराच, कीलक ये चार संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, स्त्रीवेद, नीचगोत्र, तियंचगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, तिर्यश्वायु उद्योत ये पच्चीस प्रकृतियां अनन्तानुबन्धी कषायके उदयसे बंधती हैं । अतः सासादन गुणस्थान से आगे इनका बन्ध नहीं होता । उ० ६३९. प्र० - तीसरे मिन गुणस्थान में कितनी प्रकृतियोंका बन्ध होता है ? उ०- दूसरे गुणस्थानमें बन्ध योग्य प्रकृतियाँ १०१ हैं । उनमें से व्युच्छित हुई पच्चीस प्रकृतियोंको घटानेपर शेष ७६ बचती हैं। किन्तु इस गुणस्थान में किसी भी आयुकर्मका बन्ध नहीं होता । अतः पहले गुणस्थानमें नरकायु और दूसरे गुणस्थान में तिर्यश्वायुकी बन्धव्युच्छित्ति होनेसे शेष बचो मनुष्यायु और देवायुको भी घटा देने पर तीसरे गुणस्थान में बन्ध योग्य प्रकृतियाँ ७४ रहती हैं । ६४०. प्र० - मिश्र गुणस्थान में कितनी प्रकृतियोंकी बन्धव्युच्छित्ति होती है ? उ०- मिश्र गुणस्थान में किसी भी प्रकृतिकी बन्धव्युच्छिति नहीं होती । ६४१. प्र० - चौथे अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियों का बन्ध होता है ? - तीसरे गुणस्थान में ७४ प्रकृतियोंका बन्ध होता है | मनुष्यायु, देवायु और तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध बढ़ जानेसे चौथे गुणस्थान में बन्ध योग्य प्रकृतियाँ ७७ रहती हैं । 101 ६४२. प्र० - चौथे गुणस्थान में किन प्रकृतियोंकी बन्ध व्युच्छित्ति होती है ? उ०- अप्रत्याख्यानावरण कषाय ४, वज्रऋषभ नाराचसंहनन, औदारिक शरीर; औदारिक अंगोपांग, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, मनुष्यायु ये दस प्रकृतियाँ अप्रत्याख्यानावरण कषायके उदयके निमित्तसे बंधतो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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