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________________ करणानुयोग-प्रवेशिका ६१४. प्र०- - देशघाती प्रकृतियाँ कितनी और कौनसी हैं ? उ०- छब्बीस हैं - ज्ञानावरणकी ४ ( मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण और मन:पर्ययज्ञानावरण ), दर्शनावरणकी ३ ( चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण और अवधिदर्शनावरण), मोहनीयकी १४ ( संज्वलन ४, नोकषाय, सम्यक्त्व १ ) और अन्तराय की ५ । ६२ ६१५. प्र० - अघातिकर्म किसको कहते हैं ? उ०- जो जीवके ज्ञानादि गुणोंको न घाते उसे अघाति कर्म कहते हैं । ६१६. प्र० - अघातिया कर्म कितने हैं ? -२ वेदनीय, ४ आयु, ९३ नाम और २ गोत्र, ये अघातिकर्म हैं । ६१७. प्र० - पुण्यकर्म किसको कहते हैं ? उ०- जिसके उदयमें जीवको इष्ट वस्तुकी प्राप्ति हो । - 02 ६१८. प्र० - पापकर्म किसको कहते हैं ? उ०- जिसके उदयमें जीवको अनिष्ट वस्तुकी प्राप्ति हो । ६१६. प्र० - पुण्यप्रकृतियाँ कितनी और कौन-सी हैं ? उ०- सातावेदनीय, तीन आयु ( तिर्यञ्च, मनुष्य और देव ), उच्च गोत्र, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, पञ्चेन्द्रियजाति, पाँच शरोर, पाँच बन्धन, पाँच संघात, तीन अंगोपांग, शुभवर्णं ५, शुभगंध २ शुभ रस ५, शुभस्पर्श, समचतुरस्र संस्थान, वज्रऋषभ नाराचसंहनन, अगुरुलघु, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशस्कीर्ति, निर्माण और तीर्थङ्कर ये ६८ प्रकृतियां पुण्यरूप हैं । , ६२० प्र० - पापप्रकृतियाँ कितनी और कौन-सी हैं ? -- उ०- - घातिया कर्मोंकी ४७ प्रकृतियां, नीचगोत्र, असातावेदनीय, नरक आयु, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यश्वगति, तियंश्वगत्यानुपूर्वी, एकेन्द्रिय आदि ४ जातियां, शेष पांच संस्थान, शेष पांच संहनन, अशुभ वर्ण ५, अशुभ रस ५, ३ शुभ गन्ध २, अशुभ स्पर्श, उपघात, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुभंग, दुःस्वर, अनादेय, अयश:कीर्ति – ये पाप प्रकृतियां हैं । 3 ६२१. प्र० - पुद्गल विपाकी कर्म किसको कहते हैं ? उ०- - जिसका फल पुद्गल में हो । जैसे- शरोर नामकर्म के उदयसे पुद्गल हो शरोररूप होकर परिणमन करता है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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