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करणानुयोग-प्रवेशिका
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५४२. प्र०-मोहनीय कर्मको उत्तर प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध
कितना है? उ०-मिथ्यात्व कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है। सोलह कषायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध चालीस कोडाकोड़ी सागर प्रमाण है। पुरुषवेद, हास्य और रतिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध दस कोड़ाकोड़ी सागर है। नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्साका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध बीस कोड़ाकोड़ी सागर है और स्त्रीवेदका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है।
५४३. प्र०-नामकर्मको उत्तर प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कितना
उ०-मनुष्य गति, मनुष्यगत्यानुपूर्वीका पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागर, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, समचतुरस्र संस्थान, वज्रऋषभ नाराच संहनन, प्रशस्तविहायोगति, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशःकोतिका दस कोड़ाकोड़ी सागर, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, एकेन्द्रियपञ्चेन्द्रियजाति, औदारिक वैक्रियिक तैजस कार्मण शरीर, औदारिक और वैक्रियिक अंगोपांग, हुण्डक संस्थान, असंप्राप्तासृपाटिका संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरु लघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, स्थावर, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक शरीर, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर अनादेय, अयशःकोर्ति और निर्माण कर्मका बीस कोड़ाकोड़ो सागर, दोइन्द्रिय तेइन्द्रिय चौइन्द्रियजाति, वामन संस्थान कीलक संहनन, सूक्ष्म अपर्याप्त और साधारण नामकर्मका अठारह कोड़ाकोड़ी सागर, आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग और तीर्थङ्कर नामका अन्तःकोडाकोड़ी सागर, न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान और वज्रनाराच संहननका बारह कोडाकोड़ी सागर, स्वाति संस्थान और नाराच संहननका चौदह कोडाकोड़ी सागर, स्वाति संस्थान और अर्धनाराच संहननका सोलह कोडाकोड़ी सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होता है। ५४४. प्र०-वेदनीय कर्मको उत्तर प्रकृितियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध
कितना है ? उ.-असाता वेदनीयका तीस कोड़ाकोड़ी सागर और साता वेदनीयका पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होता है।
५४५. प्र०-आयु कर्मके भेदोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कितना है ?
उ.-नरकायु और देवायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तेंतीस सागर और तिर्यञ्चायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तीन पल्योपम होता है।
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