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राघवदास कृत भक्तमाल आइ गयो जब काल महाबल, मोह जंजाल परयौ जम आये। नाम नरांइन पुत्र लयो उरि, प्रारतिवत स बैंन सुनाये। देव सुन्यौ सुर दौरि परे, जमदूतन • हरि धर्म बताये। हारि गये तब ताड़ि दये, भ्रम नैं भट आपन हूं समझाये ॥२६
मूल-छपै
राघो रांम मिलांवहि, अंतिकालि परमारथी ॥ नन्द सुनन्द सुप्रबल बल, कुमुद कुमुदाइक भारी। चंड प्रचंड जै बिज, बिराज भलैं सु द्वारी। बिष्वकसेन सुसेन, सील सुसील सुनीता।
भद्र सुभद्र गुणज्ञ, गाइये प्रम' पुनीता। येते षोडस पारषद, भक्त भजन के सारथी। राघव रांम मिलांवही, अंतकालि परमारथी ॥२६
टीका इंदव सोरह पारषदै मुखि जांनहु, सेवक भाव सु ये रिधि जोरी। छन्द श्रीपति कू करि है निति प्रीनन, ध्यान धरै जन पारत कोरी।
श्राप दिवाइ बनाइ कही हरि, प्राइस पान अमी जिम घोरी। दोष सुभाव गह्यौ उर अन्तर, ति भली सुधरी बुध बोरी ।।२७
मूल-छपै बिष्णु बल्लभ की चरण रज, निस दिन प्रारथना करूं ॥
लक्ष्मी बिहंग सुनन्द, प्रादि षोडष रुचि हरि पग। सुग्रीव हनुमान जांबवत, बिभीषन स्यौरी खग। सुदामा बिद्र पाकर, ध्रव अंबरीष सु ऊधौ। चित्रकेत चंद्रहास ग्रह, गज कीयो सूधौ। द्रुपद-सुता कौं खार वै, राघव सब को उर धरू। बिष्णु बल्लभ की चरण रज, निस दिन प्रारथनां करू ॥३०
टोका-हनुमान जू को इंदव सागर सार उधार किये नग, माल बिभीषन भेट करी है। छंद सो वह ले करि ईस निसाचर, आइ सियाबर पाइ४ धरी है।
१. प्रेम। २. पालत। ३. अक र । ४. प्राग ।
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