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________________ भक्तमाल २७२ ] अन्तज कुल अवतार कहर पखि परहरयो। भक्तवछल रछिपाल काल झम थरहरयो। जन राघौ षट-ऋतु, ख्याल अजपा जापसों। निशि दिन गोष्टी ज्ञान आपनों आपसों ।।११२२ पृ० २०६ प० ४४५ के बाद निपटजी का वर्णन निपट कपट सब छाडि कर, एक अखण्डित उर धरे ॥ उत्तम कविसो ऐन, काव्य सब के मन भावै । मनहर इन्दव छप्प, झूलणां खूब सुनावै । ज्ञानी अति गलितान, ब्रह्म अद्वैतहि गार सांची दे चाणक, भरम गहि अधर उडायो। छाप निरंजन की तहां, जिते कवित राघौ करे। निपट कपट सब छाडि, करि एक निरंजन उर धरे ॥११२४ पृ० २१८ प० ४६४ के बाद करमैंती कर्म न लग्यो साहा पैली शीश दह । गृह से निकसि भागि करक को मन्दिर कीन्हो । तीन रैन तहाँ बसी बहुरि मारग पग दीन्हो । ब्रज भूमि में जाय महा ऊँचे स्वर रोयै । लोक कुटुम्ब सब त्याग पंथ हरिजी को जोवै । जन राघौ हरिजी मिले सुख प्रगट्यो दुख गयो वह । करमैती कर्म न लग्यो साहा पैली शीश दह ॥११८६ पृ० २३० मू० प० ४८६ के बाद बलोजी का वर्णन हुकुम हसम घर माल तजि वलिराम उर सुध कियो । लगी नाम सों प्रीति रीति औरे सब छाडी। पियो ब्रह्म-रस नीर आन धर्म छाडि र नाडी। गयो पाताशा पासि ज्ञान वैराग दिपाए । दोऊ करले कांख पांव दोऊ मुकलाए । राघौ भक्ति करी इसी श्रवण सुनत उमग्यो हियो। हुकुम हसम घर माल तजि वलिराम उर सुध कियो ॥१२४६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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