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________________ भूमिका [ छ निष्ठा में १५ भक्तों को कथा है, छठई (६) भेषनिष्ठा तिसमें आठ भक्तों की कथा, सातई (७) गुरुनिष्ठा तिसमें ग्यारह भक्तों की कथा, पाठई (८) प्रतिमा व अर्चानिष्ठा तिसमें पन्द्रह भक्तों की कथा, नवई (8) लीला अनुकरण जैसे "रासलीला राम लीला" इत्यादि तिसमें छहों भक्तों की कथा, दसवीं (१०) दया व अहिंसा तिसमें छवों भक्तों की कथा, ग्यारहवीं (११) व्रतनिष्ठा तिसमें दो भक्तों की कथा, बारहवीं (१२) प्रसाद निष्ठा तिसमें चार भक्तों की कथा, तेरहवीं (१३) धामनिष्ठा तिसमें पाठ भक्तों की कथा, चौदहवीं (१४) नामनिष्ठा तिसमें पाँच भक्तों को कथा, पन्द्रहवीं (१५) ज्ञान व ध्याननिष्ठा तिसमें बारह भक्तों की कथा, सोलहवीं (१६) वैराग्य व शान्तनिष्ठा तिसमें चौदह भक्तों की क्था, सत्रहवीं (१७) सेवानिष्ठा तिसमें दश भक्तों की कथा, अठारहवीं (१८) दासनिष्ठा तिसमें सोलह भक्तों की कथा, उन्नीसवीं (१९) वात्सल्यनिष्ठा तिसमें नव भक्तों की कथा, बीसवीं (२०) सौहार्दनिष्ठा तिसमें छवों भक्तों की कथा, इक्कीसवीं (२१) शरणागती व आत्म-निवेदन निष्ठा तिसमें दस भक्तों की कथा, बाइसवीं (२२) सख्यभावनिष्ठा तिसमें पाँच भक्तों की कथा, तेइसवीं (२३) शृंगार व माधुर्यनिष्ठा तिसमें बीस भक्तों की कथा, चौबीसवीं(२४) प्रेमनिष्ठा तिसमें सोलह भक्तों की कथा का वर्णन लिखा गया।" ६. बालकराम कृत भक्तदाम-गुणचित्रणी टीका-इसकी एक प्रति उदयपुर के सरस्वती भण्डार में है। ४५८ पत्रों को यह प्रति सं० १९३२ की लिखी हुई है। बालकराम ने टीका के अन्त में अपना परिचय देते हुए लिखा है कि रामानुज की पद्धति में रामानन्द हुये उनके पौत्र-शिष्य श्रीपयहारी को प्रणाली में सन्तदास के शिष्य, खेम के शिष्य प्रहलाददास और मीठारामदास हुये। उनके शिष्य बालकदास ने यह टीका बनाई है। डॉ. मोतीलाल मेनारिया ने इसके संबंध में लिखा है कि "नाभाजी के भक्तमाल की यह एक बहुत बड़ो, सरस और भावपूर्ण टीका है। इसमें दोहा, छप्पय आदि कई प्रकार के छन्दों में वर्गन किया गया है, पर अधिकता चौपाई छन्द की ही है। हिन्दी के भक्त कवियों के विषय में नाभादास ने, अपने भक्तमाल में जिन-जिन बातों पर प्रकाश डाला है, उनके अलावा भी बहुत-सी नयी बाते इसमें बतलायी गई हैं और इसलिये साहित्यिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के साथ-साथ वह संत महात्मानों के इतिहास की दृष्टि से भी परम उपयोगी है। इसका रचनाकाल संवत् ८०० से ११५२तक का है। बालकराम की रचना कहने को नाभाजी के भक्तमाल की टीका है, पर वास्तव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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