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________________ [ छप्पन ] पढ़ाई जाती है। धर्मसागर जो की गलत प्ररूपणाओं के द्वारा श्वेताम्बर समाज में वैमनस्य की जो दरार पड़ गई थी उसे साँधने का यह एक स्तुत्य प्रयत्न था। ६. कर्मसंवेध-- यह ग्रन्थ कर्मग्रन्थ की पूर्तिरूप है। यह मागधी भाषा में है। यह एक सो चुमोत्तर गाथामय ग्रन्थ है। ७. चौबीसी-- मस्तयोगी प्रानन्दघनजी की चौबोसी के बाद, तत्त्वज्ञान और भक्ति रस से पूर्ण आपकी ही चौबीसी मानी जाती है। निसन्देह आपकी चौबीसी में भक्तिरस तो खूब छलका ही है, किन्तु आपकी शंली अन्य कवियों से सर्वथा भिन्न है। मस्तयोगी आनन्दघनजी के स्तवनों मैं सहज भक्ति प्रवाहित हुई है। उपाध्याय यशाविजयजो की कविता में प्रेम-लक्षणा भक्ति का प्राधान्य है। किन्तु आपने अपने स्तवनों में परमात्मा के वीत्तराग भाव को अक्षुण्ण रखते हुए, भक्ति की दार्शनिक मीमांसा की है। जैनदर्शन के अनुसार परमात्मा वीतराग है। तब उनकी भक्ति का क्या औचित्य हो सकता है। इसकी व्याख्या जिस सफलता के साथ श्रीमद् ने अपने स्तवनों में को वह अन्यत्र दुर्लभ है। यही उनकी महान विशेषता एवं मौलिकता है। एक-एक स्तवन एक-एक तीर्थंकर परमात्मा की स्तुतिरूप है। यह श्रीमद् की अत्यन्त लोकप्रिय कृति है। इस पर अनेक विद्वानों ने टीकाएँ लिखी हैं । ८. अतोत चौबीसो यह अतीत-कालीन केवल ज्ञानी आदि इकवीस तीर्थकर भगवन्तों का स्तवना रूप इकवोस-भजनों का संग्रह है। इसमें भी भक्ति रस के साथ-साथ जैनतत्त्वज्ञान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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