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________________ [ चीन ] साधक को सिद्धि है कि बुज्जर्व कु बुद्धि हं की, रंजिवै को रिद्धि ज्ञान-भान को विलास है । सजन सुहाय दुज चन्द ज्युं चढ़ाव है कि, उपसम भाव यामे अधिक उल्लास है । अन्यमत सौ फन्द ऐसे जैन आगम में वन्दत है ' देवचन्द्र', द्रव्य को प्रकाश है । ४. स्नात्र पूजा -- आपकी स्नात्रपूजा अखिल भारत में प्रसिद्ध है । जब ग्राप गर्भ में थे तब आपकी मातुश्री ने स्वप्न में देखा था कि चौसठइन्द्र भेरूपर्वत पर तीर्थंकर भगवान् का जन्माभिषेक कर रहे हैं। मानों उस दृश्य को चिरंजीवी बनाने के लिये ही आपने 'स्नात्रपूजा' की रचना नहीं की हो ? वस्तुतः आपकी 'स्नात्रपूजा' इतनी भावपूर्ण, प्रभावोत्पादक एवं चित्रोपम है कि गाते-गाते एक के बाद एक सारा दृश्य आँखों के सामने सजीव हो उठता है और करनेवालों को लगता है कि वे साक्षात् जन्माभिषेक में सम्मिलित हो रहे हैं । यद्यपि श्रीमद् से पहिले भी कवि 'देपाल' ने स्नात्रपूजा (जिसमें रत्नाकरसूरि कृत आदिनाथ कलश और वच्छभण्डारी कृत पार्श्वनाथकलश सम्मिलित हैं) जयमंगलसूरि ने महावीर जन्माभिषेक कलश आदि बनाये थे, तथापि जो उच्च एवं मधुर भाव प्रवरणता, श्रीमद् की पूजा में है, वह अन्यत्र दुर्लभ है । Jain Educationa International पूरण - कलश शुचि उदकनी धारा, जिनवर अंगे न्हामें । प्रतम - निरमल भाव करता, वधते शुभ परिणामे । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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