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________________ [ सैंतालीस ] सांगोपांग रचना की है। साथ ही कर्मप्रकृतियों के बंधादि -भागों की विधि एवं भागों का विस्तृत वर्णन है । पूरे ग्रन्थ पर उन्होंने स्वयं संस्कृत में सुन्दर एवं सुबोध टीका लिखी है । यह ग्रन्थ भगवती, प्रज्ञापना, कम्मपयड़ी, भाष्य, जिनवल्लभ सूरि कृत कर्मग्रन्थ एवं देवेन्द्रसूरिकृत कर्मग्रन्थ में श्राये हुए तत् तत् संबंधी सभी विषयों का एक स्थानीय संग्रह है । टीका में स्थान स्थान पर दिये गये आगम पाठ एवं भाष्य की गाथाये आपके विशद आगमज्ञान की परिचायक है । व्यावहारिक दृष्टान्त एवं यन्त्रादि देकर इस ग्रन्थ को सरल से सरल बनाने का प्रयत्न किया गया है। मार्गणाधिकार २०६ • श्लोक की टीका में श्रीमद् ने भगवान् महावीर से लेकर अपने गुरू तक की परम्परा का सक्षेप में वर्णन दिया है। इस ग्रन्थ की पूर्णता संवत् १७६६ की कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को जामनगर में हुई। इस ग्रन्थ का निर्माण राधनपुरवामी aaf शांतिदास की प्रार्थना से हुआ । कर्मसाहित्य के अभ्यासियों को सटीक इस ग्रन्थ का अध्ययन करना चाहिये। क्योंकि इससे सरलता से विशद बोध हो सकता है जैसा कि श्रीमद् ने स्वयं इसके अन्त में कहा है । जिरण सासरण समयन्नू भवंति गुणगाहिरो य सर्व्वसिं पढति सुगंति अ, लंभंति नारणलद्वीपो ॥२११॥ अन्त में स्वाध्याय से परंपरया मोक्ष फल की सिद्धि बताते हुए 'तत्त्वज्ञान का बार बार अभ्यास करना चाहिये इस प्रेरणा के साथ आपने ग्रन्थ - टीका का समापन किया है। यद्यपि श्रीमद् के सभी ग्रन्थ तत्त्वज्ञान मे भरपूर हैं तथापि आगमसार नयचक्रसार और विचारसार- ये तीन ग्रन्थ तो तत्त्वज्ञान के उत्कृष्ट नमूने हैं । इन ग्रन्थों का गंभीरता से अध्ययन करने वाला सुगमता से आगमों में प्रवेश कर सकता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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