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________________ [छन्बीस] 'खरतरवसही' में दाहिनी ओर की खुली जगह में रही हुईं सिद्धचक्र शिला पर इस भांति का लेख है। "संवत् १७८३ माघ सुजी ५ सिद्धचक्र" धणपुर के रहने वाले श्रीमाली लघु शाखा के खेता की स्त्री पाणंदबाई ने अर्पण की (बनाई) बृहत् खरतरगच्छ की मुख्य शाखा में श्री जिनचन्द्रसूरिजी हुए जिनको अकबर बादशाह ने युगप्रधान पद दिया था। उनके शिष्य महोपाध्याय राजसागरजी हुए, उनके शिष्य महोपाध्याय ज्ञानधर्मजी, उनके शिष्य उपाध्याय दीपचन्द्रजी, उनके शिष्य पंडितवर देवचन्द्रजी ने प्रतिष्ठा की।" (डॉ. वूल्हर कृत ले. सं. ३४) पालीताणा से आप राजनगर पधारे सूरतसंध का अत्याग्रह होने से १७८४ कार चातुर्मास आपने सूरत में किया। उपदेश द्वारा वहाँ कईआत्माओं को धर्मप्रेमी बनाया। वहाँ से विहार कर, विभिन्न गाँव, नगरों को पावन करते हुए आप पालीताणा पधारे। वहाँ १७८५-८६ और ८७ में वधुशाह कारित चैत्यों की बड़े महोत्सव : र्वक प्रतिष्ठा की। __डॉ. वूल्हर द्वारा संगृहीत लेख नं. ३५ और ३६ से तत्कालीन प्रतिष्ठा की पुष्टि होती है। गुरू वियोग :-- पालीताणा से विहारकर आप राजनगर पधारे । यहाँ आपके गुरुदेव उपाध्याय -जिनविजयजी ने प्रा. ले. सं. भा. २ में तथा मोहनलाल दलीचन्द्र देसाई ने श्रीमद् के जीवन चरित्र के वक्तव्य पृ. ६ में लिखा है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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