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________________ पचम खण्ड । १६१ प्रथम' वायण दिने गुहली, करी इंद्राणीए सार रे । शासन संघ मंगल भणी, इम करे श्राविका सार रे ॥शा०॥३॥ साथियो' मंगल पूरणो, चूरणो विघन मिथ्यात रे । सधवा सहियर सवि मली, मुख थको मुनि गुण गात रे ॥शा०।।४।। आगम आगमधर भणी, वधावानी वाधते ढाल रे । विच विच लेत उवारणा, हर्षती बाल गोपाल रे ।।शा०॥५॥ जे सुणे सूत्र भगते करी, तेहनो जन्म कयत्थ रे । माहरे भवोभव नित हजो, देवचन्द्र श्रुत सत्थ रे ॥शा०।।६।। सम्मेत शिखर स्तवन श्री सम्मेत गिरीन्द, हर्ष धरी वंदो रे भविका । पूरव संचित पाप तुमे निकंदो रे भविका । जिन कल्याणक थानक देखी पाणंदो रे भविका श्रिी. टेक। अजितादिक दस जिनवरू रे, विमलादिक नव नाथ । पार्श्वनाथ भगवानजी रे इहांलया शिवपुर साध रे ।।भ० श्री।।१।। कल्याणक प्रभू एकनु रे, थाये ते शुचि ठाम । वीस जिनेश्वर शिवलह्या रे तेणे ए गिरि अभिराम रे ।।भ० श्री।।२।। १-पहली वाचना के दिन । २-मिथ्यात्त्वरुपी विध्न को चूरनेवाला मांगलिक साथिया हैं। ३-कृतार्थ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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