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श्रीमद् देवचन्द पच पीयूष
लघु वय पिणा श्री गज-सकमाल, रूप मनोहर लीला विशाल ।चे०।। वीतराग वंदण अति रंग, सुविवेकी आवें* उछरंग ।।चे०।।४।। समोसरण देखी विकसंत, त्रिकरण जोगें अति हरखंत ।०।।। धन धन मांनेा मन मांहि, गया पाप हैं थयो सनाह' ॥चे०।।५।। कुमरे वंद्या जिनवर पाय, पारणंद लहरी अग न माय ।चे।। नि:कामी प्रभु दीठा जांम, वीसर्या वामा' ने धन धाम ।चे०।।६।। जिन मुख अमृत वयण सुणंत, भाग्यो मिथ्या मोह अनंत ।।चे०॥ दरसण ज्ञान चरम सुख खाण, सुद्धातम जिन तत्व पिछाण ।चे०।७। पर परणिति संयोगी भाव, सर्व विभाव न सुद्ध सुभाव ।चे०॥ द्रव्य करम नो करम उपाधि, बंध हेतु पमुहा सवि व्याधि ॥०॥८॥ तेहथी भिन्न अमूरत रूप, चिन्मय चेतन निज गुण भूपाचे०।। श्रद्धा' भासन थिरता भाव, करतां प्रगटें सुद्ध सुभाव ॥चे०।।६।। नेमि वचन सुरणी वड़वीर, धीर वचन भाखें गंभीर ॥चे०।। देहादिक ए मुझ गुण नाहि, तो किम रहिवु मुझ ए मांहि ?।चे०।१०।। जेह थो बंधाए निज तत्व, तेहथी संग करे कुण सत्व ? ॥०॥ प्रभुजी रहवु करि सुपसाय, हुँ प्रावु माता समझाय ।चे०॥११॥ पाठान्तर-प्राव मांन बजन वंदी रूप
पदा
रूप
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१-सनाथ २-स्त्री ३-श्रद्धा, भासन और स्थिरता करने से प्रात्मा का शुद्ध स्वभाव प्रकट होता है।
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