SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम खण्ड । १८१ सत्ता' सम सवि जीव छ रे अप्पा, जोतां वस्तु स्वभाव । ए माहरो ए पारकों रे अप्पा, सवि आरोपित भाव रे ॥ सुज्ञानी अप्पा ! सांभल हित उपदेश ।।८।। गुरुणी पागल एहवु रे अप्पा, जुठं केम कहेवाय । स्वपर विवेचन कीजतां रे अप्पा, माहरो कोई न थाय रे ॥ __ सुज्ञानी अप्पा ! सांभल हित उपदेश ॥६॥ भोगपणु परण भूलथी रे अप्पा, मानें पुद्गल खंध । हुं भोगी निज भावनों रे अप्पा, परथी नही प्रतिबंध' रे॥ सुज्ञानी अप्पा! सांभल हित उपदेश ॥१०॥ सम्यक ज्ञाने वहेचतां x रे अप्पा, हुँ अमूर्त चिद्रुप । कर्ता भोक्ता तत्त्वनो रे अप्पा, अक्षय अक्रिय अनूप रे ।। सुज्ञानी अप्पा ! सांभल हित उपदेश ।।११।। सर्व विभाव थकी जुदो रे अप्पा, निश्चय निज अनुभूति । पूर्णानंदी परमात्मा रे अप्पा, नहीं पर परिणति रीति रे ॥ सुज्ञानी अप्पा ! सांभल हित उपदेश ॥१२॥ पाठान्तर- विचारता १-चेतना रूप से सभी आत्मा एक समान है। २-अपने और पराये का विवेक करने पर। ३-प्रात्माका पर पदार्थो के साथ वास्तव में देखा जाय तो कोई संबंध नहीं है। ४-सम्यक ज्ञान से विवेक करने पर । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy