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मृतक गंध योनि छे, कृमि कुल पूरण एह रे भाई ।
क्षर मूत्र भरती रहे, तिरण उपर श्यो नेह रे भाई || नारी० ||१२|| पंडित स्त्री से संग रे भाई । देवचंद्र पद रंग रे भाई || नारी० ।। १३।।
मनोनिग्रह सज्झाय
एह स्वरुप जारणी तजे, मदन मोह जीपी लहे,
श्रीमद देवचन्द्र पद्य पीयूष
कुशल लाभ मन रोध थी रे लाल, प्रतम तत्व सन्नाह रे || सुगुण नर || आपा पर वंचे जिके रे लाल, निज मन थिरता साह रे सु०॥१॥ मन गज वश कर ज्ञान सुं रे लाल, मन वश विण शिव नांह रे || सु०॥ ध्यान सिद्ध मन शुद्ध थी रे लाल, भांजे भव दुख दाह रे || सु० |मन० | २ || तीन भुवन तसु दास छे रे लाल, जसु वशी मन मातंग रे ।। ० ।। मुक्ति गेह ते जन लहे रे लाल, जसु मन छे निःसंग रे || सु० || मन० || ३ || जिम मन नी शुद्धि हूवे रे लाल, तिम तिम वाधे विवेक रे ।। सु०॥ शिव चाहे मन वश विना रे लाल, मृग तृष्णा सम भेक रे || सु | मन० |४| ||०||
सु०॥ मन | ५ ||
राच रे
ज्ञान ध्यान तप जप सहु रे लाल, मन थिर कीधां साच रे जग दुःख दायक मन अछे रे लाल, विषय ग्राम में ज्ञान पराक्रम फोरवी रे लाल, वश करी मन गज नव वन मन कपि जिण दम्यो रे लाल, तसु सिद्धा सवि काज रे| सु० | मन० । ६ ।
राज रे
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सु० ||
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१ - दुर्गन्धयुक्त २-कीड़ों से प्राकुल ३- काम और मोह को जीतकर ।
भावों का लाभ ५- मेंढ़क
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।।
४- शुभ
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