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________________ पंचम खण्ड [ १३५ अाठ रुचि सज्माय सुरपति नत देव अमित गुरिण, श्री भाव प्रकाशक दिन मणी । शासनपति वीर जिनेश ना, गणधर वर सोहम' शुचि मना ।।१।। शुचिमना सोहम सीस जंबू, भरणी सीख कही भली । सुणो पालम तत्व रोचक, करी निज मति निरमली ।। ए आठ कारण मोक्ष साधक, परम संवर पद तणो । करो आदर अतिहि उद्यम, यतन साधन प्रति घणो ॥ अभिनवा गुण नी वृद्धि थास्यै, दोष क्षय जास्ये सर्वे । ते माटे सेवो सूत्र आणा, सुख लहो जिम भव भवे ॥२॥ __ (अनुभव रंगीले प्रातमा ए ढाल) पहिलं कारण सेविये,. भाखे वीर जिणंद. रे । नित नित्त नवु नवु सांभलो, शुद्ध धरम सुख कंद रे ।। थास्ये, परम पाणंद रे, ऊगे ज्ञान दिणंद रे . झलके अनुभव चंद रे ॥१॥ प्राणा रंगी रे प्रातमा, तजी तुं. सर्व प्रमाद रे । करि पागम पास्वाद रे, वसि निज तत्त्व प्रासाद रे ।।प्रांकुणी।। गीतारथ श्रुतधर मिली, प्राणी अति बहुमान रे । नय निक्षेप प्रमाण थी, अभ्यासो श्रुत ज्ञान रे ॥ १-भगवान् के गणधर सुधर्मा स्वामीज़ी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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