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श्रीमद् देवचन्द्र पछ पीयूष
जे रम्या सुध सरुप रमण देह निर्मम निर्मदा काउसम्ग मुद्रा धीर प्रासन ध्यान अभ्यासी सदा तप तेज दीपइ कर्म जीपइ नैव च्छीपइ' पर भणी मुनिराज करुणा सिंधु त्रिभुवन बंधु प्रणमु हितभरणी ।।५।। सम्यग् दर्शन गुण नमो तत्त्व प्रतीति सरूपो जी जसु निर्धार सभाव छै चेतन गुण जे प्ररूपो जी
जे अनूप श्रद्धा धर्म प्रगटै सयल परि ईहा टलै निज सुध सत्ता प्रगट अनुभव करण रुचिता उछच्ल .. बहु मान परणति वस्तु तत्वै अहव तसु कारण पणे
निज साध्य दृष्ट सरव करणी तत्वता संगति गरी ॥६॥ भव्य नमो गुण ज्ञान नै, स्व पर प्रकासक भावे जी पर्यय धर्म अनंतता, भेदा भेद सभावै जी
जे मुख्य परणति सकल ज्ञायक बोध भास' विलच्छना मति आदि पंच प्रकार निर्मल सिद्ध साधन लच्छना स्याद्वाद संगी तत्त्व रंगी प्रथम भेद अभेदता
सविकल्प नै अविकल्प वस्तु सकल संसय छेदता ॥७॥ चारित गुण वलि वलि नमो, तत्त्व रमण जसु मूलो जी पर रमणीय पणो टलै, सकल सिद्ध अनुकूलो जी
१-दूसरो से प्रभावित नहीं होते हैं।
२-भाव
३-परि
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