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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूषः
ए पंचांगी सार बोध, . कयो जिन पंचम अंग ।। नंदी अनुयोगद्वार साखि, मोना मन रंगै ।। वीर परंपर जीत' शुद्ध, अनुभव उपगारी । अभ्यासो आगम अगम, निरुपम सुख कारी ।।५।। मोह पंकहर नीर सम, सिद्धांत अबाध । देवचंद्र ग्राणा सहित, नय भंग अगाध ॥ ए श्रुत ज्ञान सुहामणो, सकल मोक्ष सुख कंद । भगत सेवो भविक जन, पामो परमानंद ॥६॥
___मौनेकादशी नमस्कार
तिहुअण' जण पाणंद कंद जय जिणवर सुख कर । कल्याणक तिथि मांहि जेह परमोत्तम सुदर ।। मिगसर सुदि एका दशी वसी सुगुण मन मांहि । आराधो पोसह करी तो पामो सुख लाहि ।।१।। श्री अर जिन दीक्षा प्रदान नमि केवल भासन । मल्लिनाथ जिनराज जनम दीक्षा शुचि वासन ।।
केवल नाण कल्याण पंच श्री जंबू भरते । . इम दश क्षेत्रे एक काल जिन महिमा वरते ॥२॥
१-याचार
२-त्रिभुवन के जनों के लिये अानंद के अंकुर
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