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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूर
आगम अरथ लह्या विना, पागम ऊयापि । ते तप खप करता थकां, नवि भव भय कापि ॥नवा० ।।१७।। इम आलोची चित्त मां, जिनपडिया वंदो । जिन सासण उद्दीपणा, करतां अानंदो।।१८।। 'सेठ विहार' सोहामणा, आदेसर स्वामी । वंदो पूजो भविजना, पूरण सुख कामी ॥नवा०।।१८।।
कलश।
इम मोक्ष कारण विघन वारण तरण (तारण)गुण करो। जिनराज वंदन नमन पूजन सूत्र साखै आदरो ।। सुच ध्यांनि वाधि सिद्ध साद्धि करम कलेश सहू हरी। श्रीदीपचंद पसाय भाखी देवचंद्र हितधरी ॥१६॥
इति श्री नवानगर आदि जिन स्तवनम्
श्री अजितनाथ (ध्रांगध्रा) स्तवन
अजितनाथ चरण तेरे प्रायौ, बहुत सुख पायौ च° तू मनमोहन नाथ हमारी, त्रिभुवन जन कु सुखकारौ ॥च०।।१।। तृष्णा ताप निवार निवारी, बावन चंदन सु अति प्यारो ॥च॥२॥ महामोह गिरि तुग करारो, नसु भदेन कु वज्र अटारौ ।।च०।३।। ध्रांगदरापुर में मनुहारौ, अजितप्रसाद वण्यौ अतिसारौ ॥च०॥४॥ समता रस वर्षन घन धारी, समकित बीज उपावन व्यारौ ॥च०।।५।। देवचंद्र गुण गण संभारी, एही ग्रशरण शरण उदारौ ॥०॥६।।
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