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........श्रीमद् देवचन्द्र पच पीयूष नवानगर आदि जिन स्तवनर
नवानगर मां भेटीइ, जिनवर जयकारी । परमानंद महारसी, ... मुरति .. मनोहारी ।।नवा०॥१॥ घणा दिवस नी, हूंसड़ी, हंती, मनं माहे । ते सवि आज - सफल थई, प्रणमी जग नाहे ।।नवा०॥२॥ दरसण दीठिं देव नु, दुख जाइ दूरि । चिदानंद रस. ऊपजि, समता . स . पूरि ।।नवा०।।३।। जिनमुद्रा जिनवर समी, सिव साधन भाखी। श्री अरिहंत' अवलंब नि, पूरणी दाखी निवाठ॥४॥ परिण संवर' जिन भक्ति नो, फल' सिरखू तोल्यू ।' हित सुख निश्रेयस पणे, प्रांगम में बोल्यूं"मवा०॥५।।८ तुगीया' नगरी में 'श्रावक, जिन पूजो कीधी। भगवई में संख पुष्की , पूजन विधि लीधी नेवा ॥६॥ ऋषभदत्त अधिकार में, "उववाई" उवांगें।
हरत जिन पुष्फ पूजता, अधिकार प्रसंगे ।।नवा०॥७॥" भगवई अंगे साधु जी, जिन प्रतिमा वंदि । आवसक. मि. पूजेता, अनुमोदि आनंदि निवा०।।८।।
१-अरिहंत प्रभु का अवलंबन लेने से मोक्ष-मिलता है। २-संवर का और जिनभक्ति का समान फल है। ३-भगवती सूत्र में, शंख श्रावक और पुष्कली श्रावक ने। ४-यावश्यक सूत्र ।
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