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श्री शत्रुजय स्तवन
(मोरा प्रातम राम नी देसी) चालो चालो ने राज श्री सिद्धाचल जईई ।। श्री विमलाचल तीरथ फरसी, प्रातम' पावन करीइं ।।चा०॥१॥ इण गिरवर पर मुनिवर कोड़ी, आतम तत्व निपायो। पूर्णानंद सहज अनुभव रस, महानंद पदपायो ।चा०॥२॥ पुंडरीक पमुहा मुनि कोडी, सकल विभाय गमायो। भेदा भेद तत्त्व परिणित थी, ध्यान अभेद उपायो ।चा०॥३।। जिनवर' गणधर मुनिवर कोडी, ए. तीरथ रंग राता । सुध सक्ती व्यक्त गुण सीद्धी, त्रिभुवन जन ना त्राता चिा०॥४॥ ये गिर फरस्य भव्य परीक्षा, दुरगति नो उच्छेद । सम्यग्दर्शनः निर्मल कारण, निज आनंद अभेद ।।चा०॥५॥ संवत अढार चिडोत्तरा (१८०४)वरस्य, सित मसिर तेरसीइ ।। श्री सूरत थी भक्ति हरष थी, संघ सहीत उल्लसीइं ।।चा०॥६॥ कचरा कोका जिनवर भक्ती, रूपचंद जी इंद्र । श्री संघ में प्रभुजी भेटाव्या, जगपति प्रथम जिणंद ॥चा०॥७॥ ज्ञानानंदिते त्रिभुवन वंद्रीत, परमेश्वर गुण भीना । देवचंद पद पाम अद्भुत, परम मंगल लयलीना ॥चा॥८॥ ....
- इति श्री शत्रुजय स्तवन
-अपने स्वरूप को प्रकट किया . . २-मोक्षपद. ३-सिद्धाचलतीर्थ ४-शुक्लपक्ष की
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