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[ दस ] श्रीमद् ने अपनी कविताओं में भगवान का गुण गान कर अपने गुणों को उभारा है, उनके दर्शन कर अपने स्वरूप का दर्शन करना चाहा है । भगवान् के जीवन की याद कर अपने जीवन का निर्माण करने का प्रयास किया है । उनके साधना मार्ग को स्मरण कर अपना साधना मार्ग प्रशस्त किया है। उनके त्याग
और तप से प्रेरणा लेकर स्वयं को ऊपर उठाने का प्रयत्न किया है। श्रीमद् ने अपनी रचनाओं में जैसा इस जैन सिद्धान्त का निर्वाह किया है, वैसा शायद कोई कवि नहीं कर सका।
__ श्रीमद् एक उच्च कोटि के कवि ही नहीं वे एक आदर्श संत भो थे उनकी प्रत्येक कविता में संत वाणी उजागर होती हैं। उनके हर पद में जैन दर्शन प्रस्फुटित होता है। सचमुच उन्होंने अपनी कविताओं में जैन सिद्धान्त रूपी सागर को गागर में भर दिया है। श्रीमद् के स्तवन, स्तुतियां, पद, सज्झाएँ जब भक्त लोग मधुर लय में गाते हैं, तब श्रोता जन भी झूमने लग जाते हैं और उस समय सब के हृदय में एक अपूर्व आत्मानुभूति जागरित होती है। स्वर्गीय पं० चैनसुखदासजी ने ठीक ही कहा है-“संत जब कवि की भाषा में बोलता है तब उसका माधुर्य इतना आकर्षक बन जाता है कि भक्ति साकार होकर हमारे सामने आ जाती है ।" . जीवन चरित्र का प्रालेखन
हमारे अनुरोध को स्वीकार कर श्रीमद् के जीवन चरित्र का आलेखन तथा शब्दार्थ का कार्य परम पूजनीय साध्वोजी श्री अनुभवश्रीजी की विदुषी शिष्या साध्वीजी श्री हेभप्रभाश्रीजी एम० ए० (दर्शन शास्त्र) ने किया है जिसके लिए मैं उनका हार्दिक आभार प्रकट करता हूं। श्रीमद् के जीवन चरित्र में आवश्यक संशोधन या परिवर्द्धन आपकी स्वीकृति से किया गया है ।
विदुषी साध्वीजी श्री मणिप्रभाश्रीजी एम० ए० ने समय समय पर बड़ी लगन एवं तत्परता से मार्ग दर्शन दिया है अतः उनके प्रति आभार प्रकट करता हूँ। भूमिका
श्रीमद् के परम भक्त एवं जैन विद्वान मांडवी, कच्छ (गुजरात) निवासी श्री ईश्वरलाल चुन्नीलाल लूणिया ने प्रस्तुत पुस्तक की भूमिका लिख भेजो है जिसके
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