SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अष्टापद तीर्थ स्तवन भेटो भेटो शिव सुख काज, भविजन ! ए तीरथ ने मेटो मेटो मोह अनादि, भव भवना संकट ने (ए टेक) श्री अष्टापद गिरिवर उपर, जिनवर चैत्य जुहारो। भरत भूप कृत चौमुख सुन्दर, शिवसुख कारणधारो । भेटो० ॥१॥ बहु भव संतति कर्म सहित पण, जे भेटे ए ठाम । ...२ क्षेत्र' निमित्त शुचि परिणामे, पामे निज गुण धाम । भेटो०॥२।। ऋषभ जिनेश्वर परमर महोदय, पाम्या इण गिरीशृंगे। .. चिदानंदघन संपति पूरण, सिद्धा बहु मुनि संगे । भेटो० ।।३।। भरत मुनीश्वर प्रातम सत्ता, प्रगट पणे इहां कीध । इण पर पाट असंख्य संजमी, सर्व' संवर पद् लीध । भेटो० ॥४॥ जे निज सत्ता तत्व स्वरूपे, ध्यान एकत्वे ध्यावे । अनेकान्त गुण धर्म अनंता, थावे निर्मल भावे । भेटो० ।।५।। तेहD कारण प्रातम गुणत्रय, तसु कारण जिनराज । तसु बहुमान भान हेतु ए, तिम ए भवोदधि पाज । भेटो० ॥६॥ मिथ्या मोह विषय रति धीठी, नाशे तीरथ दीठी। तत्वरमण प्रगटे गुण श्रेणे, सकल कर्मदल' नीठी। भेटो० ॥७।। ३-मोक्ष ४-ज्ञान-दर्शन-चारित्र १-क्षेत्र के निमित्त से, भावशुद्धि द्वारा २-मोक्ष "-कर्मसमूह का नाश होने पर । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy