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४० ]
चंदन
काष्टे जिन तनु जी, दाहे
अग्निकुमार ।
दुख
भरि सजल नयों करी जी, वायु ते पवन कुमार ना० २ ॥ उदधिकुमार जलें करी जी, सीतल कीधी वांग । जिन दाढा लें भक्ति थी जी, सुरपति दक्षिण वाम ॥ ना० ॥ ३॥ अस्थि भस्म माटी ग्रहें जी, सुरनर अवर अनेक । वंदें पूजें भक्ति थी जी, धरता चित्त विवेक ॥०॥४॥ देव सरमा प्रतिबोधियो जी, वलीया गौतम स्वामि । सांभ वन में मुनि वस्या जी, पाम्या श्रुति विश्राम ॥ ना०||५|| पावा परसर गरणधरू जी, राति वस्या जिहि ठाय । वीर विरह गौतम सुरण जी. हीयड़ें दुक्ख न माय हे प्रभु मुझ बालक भरणी जी, मूकी सिंसु ने वेगलो जी, ए नीपाव्यों
॥
स्यै न
हिव कुरण संसय मेटस्यें जी, कौनें वांदी भगति स्युंजी, करस्यु
१- भोग
श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
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जरणाव्यू
कांम
कहस्ये सूक्ष्म विनय स्वभाव
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ना० ॥ ६ ॥
आम ।
॥
ना० ॥७॥
वीर विना किम थायस्यै वीर आधारे घेतला जी,
इम चितवतां उपनो जी, वस्तु धरम करता सह निज कार्य ना जी, प्रभु नैमित्तिक योग || ना०||१०||
भाव ।
ना०||८||
जी, मोनें प्रतम सिद्धि । पाम्या पूर्ण समृद्धि ना०|||| उपयोग ।
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