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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
(६) ढाल--बहिनी रहि न सकी तिसें जी-ऐ देशी सुरनर तिरिय समूह मैं जी, बैठा श्री वर्द्धमान ।
जगत दयाल उपदिसेजी, शुद्ध धरम सुख थान ॥१॥ जिणेसर तुम्ह मुझ प्राणाधार'... . . . . . . . . भवभय पीडित जीवन जी, त्राण शरण सुखकार ।।जिणे०।। सोल पौहर नी देसना जी, वीर कही तिणवार क्षीरा श्रव वचने कह्या जी, प्रश्न छत्तीस उदार ॥२॥जि०॥ पंचावन अध्ययन मांजी, सुख विपाक स्वरूप । वलि तेता अध्ययन मांजी, दूख विपाक विरूप ।।३।।जि०।। छट तपै निशि पाछली जी, करि प्रांजजी वीर्य । योग रोध बादर करीजी, शेध्या सुख्म वीर्य ।। ४ाजि०॥ सकल' प्रदेश धनी करीजी, चरम विभागावगाह । प्रकृति बहत्तर खेरवो जो, कृत तेरस प्रकृति नो दाह ।।५।।जि०।। पर्यकासन शिंवलह्यांजी, स्वाति नक्षत्रो स्वामि । गाग करण दर्श' वरयुजो, पूर्णानंदी धाम ॥जि०।६।। अपुसमाग गति थी लह्यांजी, एक समय लोगंत । पूर्व प्रयोग अबन्धने जी, ऊरध गति ने तंत ॥जि०।।७।। अवगाहन कर च्यार नी जी, सोलह अंगुल मांय । सर्व प्रदेश गुरग पज्जवा जी, तुल्य प्रमाण समाय ।।जि०॥८॥
१ सकल प्रदेश घनी का० रन्ध्र छिद्र पूर विभाग ऊरणत एतने प्रदेश घन कहिबाइ ---दर्श-अमावश्या
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