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________________ प्रथम खण्ड प्रथम खण्ड..... [ २३ दूर थका पण गुण ग्रहे, पाले अविहड़ प्रीत लाल रे । पास जिनेश्वर ! तेहनी, कीजे हर विध चिंत लाल रे ॥जग०॥८।। अलगा पण ते टूकड़ा, जेह वसे मन मांय लाल रे । पास थका पण टालीये, जे दीठा न सुहाय लाल रे ।।जग०॥६॥ दीठां दुख दोहग टले, भेटयां भावठ' जाय लाल रे । पाप पणासे पूजतां, सेवंतां सुख थाय लाल रे ॥जग०॥१०॥ तु जगवल्लभ जग गुरू, तू हीज दीन दयाल लाल रे । तुहीज सेवक जन तणा, टाले सकल जंजाल लाल रे ।।जग०॥११॥ दूर थकां पण माहरो, त्हीज जीवन प्राण लाल रे । नजर तले प्रावे नहीं, वीजो देव अजाण लाल रे ।।जग०॥१२॥ तुझ समरण मन में करू नाम जपू तुम जीह लाल रे । तुझ दरिसणनी प्राश थी, बोले छे मुझ दीह लाल रे ॥जग०॥१३॥ दीपचंद्र सद् गुरू तणो, शिष्य कहे जिनराज लाल रे । देवचंद्र नी मन रली, पूरजो महाराज लाल रे ॥जग०॥१४॥ -भूख २-जिह्वा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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