________________
प्रथम खण्ड
श्री नेमिनाथ स्तवन राग-केदारो (सुविधि जिनेश्वर पाय नमीने, ए देशी)
बालाजी रे वीनतड़ी एक माहरी धारो, बोले राजुलनारी। हुं दासी छु श्री प्रभुजी नी, प्रभु छो पर उपगारी रे ॥वा.।।१।। प्रेमधरी - मुझ मंदिर प्रावो, पूरव नेह संभारी रे । सज्जन' प्रीति मधुरता स्वादे, अमृत दीघ उवारी रे ॥वा.।।२।। एकवार जो वचन निवाही, देता जो करताली रे। तोरण थी चाल्या रथ वाली, एशी प्रीति संभाली रे ।।वा.॥३।। लोक कहे जे प्रीत न पाली, ए साची प्रीत निहाली रे। मोह विभाव उपाधि थी टाली, आत्म समाधि देखाली रे ।।वा.।।४।। अष्ट भवोलगी नेह निवाह्यो, नवमे भव पलटायो रे। गुण रागे हो वेराग उपायो, परम तत्त्व निपजायो रे ।।वा.।।५।। रसकू पी' रस लोहने वेधे, कंचनता प्रगटावे रे । नेम प्रेम रस वेधी राजुल, भव भय व्याधि मिटावे रे ।।वा.।।६।। साची प्रीत राजीमती राखी, अविहड़ रंग सदाई रे। देवचंद्र आणा तप संयम, करतां सिद्धि निपाई रे ।।वा.॥७॥
-सज्जन पुरुष के प्रेम की मधुरता के सामने अमृत भी फीका है। २-लोहे और वर्ण रस का समिश्रण होने से, लोहा सोना बन जाता है, वैसे नेमनाथ के प्रेमरस से जुल का भव-भय मिट गया।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org