________________
श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
साते नय दो नय थकी, जगरूप विचारइ लो । अहो जग । तीन योग इक योग सु, मन मांहि उचारइ लो। अहो मन० ॥३॥ पृथक्त्व वितवर्क विचारते, शुक्ल ध्यान कहावइ लो । अहो शु० । निश्चय मत ध्यावइ सदा, ते चढतइ दावइ लो । अहो ते० ॥४॥ एक वस्तु नय सात सु, मांहो मांहि मिलावइ लो । अहो मां० । एह मिलइ दो नय थकी, ए च्यार मिलावइ लो । अहो ए० ।।६।। केवल तदि पामी करी, ते ध्यान ज ध्यावइ लो । अहो ते० । एक तर्क अविचार ते, शुवल बीजउ पावइ लो । अहो शु० ॥७॥ अंत महुरत आयुष थकइ, ध्यान तीजइ ध्यावइ लो । अहो ध्या० । निज गुण मोक्ष प्रावी रह्या, दोय योग रुधावइ लो । अहो दो० ॥८॥ एक योग वादर अछइ, तेहिज पिण रोकइ लो । अहो ते० । । सूक्ष्म उसास नीसास सु, निज रूप विलोकइ लो । अहो नि० ॥६॥ सूक्ष्म उछ्वास लेतउ थकउ, निश्चय पद धारइ लो । अहो नि । सूक्ष्म क्रिया प्रति पातीयउ, तीय शुक्ल संभारइ लो । अहो ती० ॥१०॥ शैलेसी करतां थकां, सब जोग खपावइ लो । अहो स० । पांच अक्षर परिमाण में, अद्भुत पद ध्यावइ लो । अहो अ० ॥११॥ परबत जिम देह छोडि नइ, ते मोक्षइ जावइ लो । अहों ते० । हृस्व वर्ण इम पांच मइ, चउथउ शुक्ल प्रावइ लो । अहो च० ॥१२॥ दोय ध्यान सब जीव तउ, निश्चय करि ध्यावइ लो । अहो नि । धर्म ध्यान भवि जीव जे, ते हिज ध्रव पावइ लो । अहो ते १३ शुक्र ध्यान पंचम अरइ, निश्चय करि नावइ लो । अहो नि ।' पहिलो संघयण नो धणी, शुक्ल ध्यान ज पावइ लो । अहो शु० ॥१४॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org